शुक्रवार, 19 मई 2017

मैंने गांधी को क्यों मारा

60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण – 

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोडसे घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया। 
नाथूराम गोडसे समेत 17 अभियुक्तों पर गाँधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह Court परिसर तक ही सीमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गाँधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोडसे ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया। 

“मैंने गाँधी को क्यों मारा” 

नाथूराम गोडसे ने गाँधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की। 

“नाथूराम गोडसे के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश” 

1. नाथूराम का विचार था कि गाँधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी। कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गाँधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे। नाथूराम गोडसे को भय था गाँधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे। 

2. 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था। भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गाँधी जी के पास गयी लेकिन गाँधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया। 
3. महात्मा गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया। महात्मा गाँधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दुओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके। 

4. काँग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गाँधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे। गाँधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया। 

5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी। पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गाँधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गाँधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया। 

6. गाँधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए। अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने। जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गाँधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था। गाँधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया। गाँधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता। 

7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली। मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गाँधी नतमस्तक हो गये और गाँधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया। 

8. महात्मा गाँधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गाँधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया। लेकिन महात्मा गाँधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके। 

9. लाहौर काँग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गाँधी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया। गाँधी जी अपनी माँग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे। इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे। 

10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय काँग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गाँधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गाँधी जी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गाँधी जी ने कुछ नहीं किया। 

11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे। जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गाँधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी+उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे। बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ। 

12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गाँधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्रगान नहीं बनने दिया। 

13. गाँधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गाँधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे। 

14. काँग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गाँधी जी की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया। 

15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गाँधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला। 

16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया। जिसका महात्मा गाँधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी । महात्मा गाँधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की माँग जायज हो या नाजायज। गाँधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की। 

घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया। 

नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गाँधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की। 

मैं उनका बहुत आदर करता हूँ लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के, एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ। गाँधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था। 

नाथूराम गोडसे ...... 

द्वारा अदालत में दिए बयान के मुख्य अंश..... 

मैंने गाँधी को नहीं मारा 

मैंने गाँधी का वध किया है 

गाँधी वध.. 

वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे.. 

जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है.. 

मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत निति के प्रति गाँधी जी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे मजबूर किया.. 

पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुकतान करने की गैरवाजिब माँग को लेकर गाँधी जी अनशन पर बैठे.. 

बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओं की आपबीती और दूरदशा ने मुझे हिला के रख दिया था.. 

अखंड हिन्दू राष्ट्र 

गाँधी जी के कारण मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था.. 

बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ों में बटना 

विभाजित होना असहनीय था.. 

अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे.. 

मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को गाँधी जी मानते जा रहे थे.. 

मैने ये निर्णय किया के भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है तो मुझे गाँधी को मारना ही होगा..
और 
मैने इसलिए गाँधी को मारा...!! 

मुझे पता है इसके लिए मुझे फांसी होगी
में इसके लिए भी तैयार हूं... 

और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे तो मै यह अपराध बार बार करूँगा
हर बार करूँगा ... 

और 
जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियों का विसर्जन नहीं करना !! 

मुझे फ़ासी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज
और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो !! 

मै फ़ासी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय जय बोलना चाहूँगा !! 

हे भारत माँ 
मुझे दुःख हे मै तेरी इतनी ही सेवा कर पाया .. 

- नाथूराम गोडसे.. 

कृपया अपना विचार जाहिर करें. Supreme Court से अनुमति मिलने पर प्रकाशित की गयी है...

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