सोमवार, 5 जून 2017

जानिए की हिन्दुओं को अपने घरों में अगरबत्ती क्यों नहीं जलानी चाहिए?

हमारे वैदिक सनातन हिन्दू धर्म में अगरबत्ती का प्रयोग वर्जित हैं? 
आइये जाने की आखिर क्यों हम बॉस जला कर खाना नही बनाते । दाह संस्कार में भी बॉस नही जलाते । फिर बॉस से बनी अगरबत्ती जला भगवान को कैसे प्रसन्न कर सकते है? 

फ़ोटोप्रत्येक भारतीय घरों में पूजा के दौरान धूपबत्ती या अगरबत्ती जरुर जलाई जाती है। इनके बिना पूजा की विधि अधूरी मानी जाती है। एक शोध में पता चला है कि अगरबत्ती एवं धूपबत्ती के धुएं में पाए जाने वाले पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) की वजह से पुजारियों में अस्थमा, कैंसर, सरदर्द एवं खांसी की गुंजाइश कई गुना ज्यादा पाई गई है। 

खुशबूदार अगरबत्ती को घर के अंदर जलाने से वायु प्रदूषण होता है विशेष रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड। अगर आप नियमित पूजा करती हैं और अगरबत्‍ती जलाती हैं तो अच्‍छा होगा कि अगरबत्तियों की मात्रा में कमी कर दें या फिर केवल घी गा दिया ही जलाएं। बंद कमरे में अगरबत्ती न जलाएं। इससे धुएं की सान्द्रता बढ़ जाती है, और फेफड़ों पर ज्यादा असर होता है। 

शास्त्रो में बांस की लकड़ी जलाना मना है फिर भी लोग अगरबत्ती जलाते है। जो की बांस की बानी होती है। अगरबत्ती जलाने से पितृदोष लगता है। शास्त्रो में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता सब जगह धुप ही लिखा हुआ मिलता है। अगरबत्ती तो केमिकल से बनाई जाती है भला केमिकल या बांस जलने से भगवान खुस कैसे होंगे? अगरबत्ती जलाना बांध करे सब पंडित लोग। पूजन सामग्री में जब आप यजमान को अगरबत्ती लिख कर देंगे ही नहीं तो जलाने का सवाल ही नहीं। इस सत्य से यजमानो को अवगत कराये। आजकल लोगो को पितृ दोष बहुत होते है इसका एक कारन अगरबत्ती का जलना भी है। 

अगरबत्ती का पूजा में प्रयोग हिन्दुओ को पूजा का प्रतिफल न मिले एक साजिश के तहत यवनो ने बहुत वर्षो पहले शुरू कराया जो आज पूजा में परम्परा का रूप ले चुका है।

प्रिय पाठकों। मित्रों, जिस समय यवनो ने हिंदुस्तान पर आक्रमण किया तो उन्होंने देखा हिन्दू सैनिक युध्द से पहले पूजा पाठ करते थे जिसमें धुप दीप जलाकर अपने इष्ट को प्रसन्न कर उन पर टूट पड़ते थे यवनो को हार का सामना करना पड़ता था ये सब देख कर ओरंगजेब जैसे आक्रमण कारी यो ने हमारे पूजा स्थलों को तोड़ना शुरू किया ताकि हिन्दुओ को अपने इष्ट से शक्ति प्राप्त न हो और उनकी युध्द में हार हो जाये मंदिर तोड़े जाने से हिन्दू सेना और भड़क उठती अपनी पूरी ताकत लगा यवनो को हरा देती ये देख कर यवन सेना के बुध्दि जियो ने सोचा की हिन्दुओ के भगवान बहुत शक्तिशाली है पूजा पाठ करने से हिन्दुओ को शक्ति प्रदान करदेते है जिस कारण हमारी सेना प्रा जित हो जाती है तब उन्होंने हमारे धर्म ग्रन्थों का अध्यन किया तो शास्त्रो में पाया कि हिदू धर्म में बॉस जलाना वर्जित है।

यवनो को एक समस्या का और भी सामना करना पड़ रहा था युध्द में उनके हजारो सैनिक एक दिन में मारे जा रहे थे उन्हें एक साथ दफनाने में युध्दभूमि पर बहुत बदबू हो जाती थी तब यवनो ने बॉस पर वातावरण शुध्द करने वाली हमारी हवन सामग्री लपेट कर अगरबत्ती बनायी उसे कब्र पर जलाने से बदबू आ नी बन्द हो गयी यवनो ने हमारे धर्म भीरु भोले भाले सैनिको को अगरबत्ती दिखा कर समझाया देखो तुम्हारे भगवान सुगन्धित धूप से प्रसन्न होते है ये अगरबत्ती जलाया करो कितनी अच्छी सुगन्ध आती है।

अगर बत्ती बॉस की लकड़ी पर बनी होने के कारण हमारे सैनिको की पूजा खण्डित होने लगी उन्हें कब्र पर जलाने से बदबू से छुटकारा मिला। आज भी मुसलमान एक हफ्ते तक कब्र पर अगरबत्ती जलाते है और हम देखा देखी में आज भी बॉस पर बनी अगरबत्ती जला अपनी पूजा खण्डित करने में लगे है। हमने राजस्थान और मध्यप्रदेश भृमण में देखा कि वहां के लोग पूजा पाठ के साथ तीज त्यौहार बड़े मन लगा कर करते है मगर अगरबत्ती का प्रयोग करने से उन्हें अपेक्षित परिणाम या प्रतिफल नही मिलता। 

वहीँ ध्यान देने बात यह हैं की कुछ विद्वान् पंडित भी अज्ञानतावश पूजा सामग्री में सबसे पहले अगरबत्ती का पूड़ा लिख वाते है। आज देश में 80%मुसलमान व् 20%हिन्दू अगरबत्ती बनाने के कारोबार से जुड़े है। कुछ हमारी घार्मिक संस्था भी ज्ञान न होने के कारण बॉस पर अगरबत्ती बनाकर बेच रही है। 

हमारे धर्म में बांस जलाने की मनाही है। बांस जलाने की लकड़ी के रूप में बिलकुल ही अनुपयोगी है। पुराने लोग कहते आये हैं कि 'बांस को जलाने से वंश जलता है। ' अब बांस को जलाने से वंश के जलने का क्या संबंध? हमारे शास्त्रों ने या हमारे महापुरुषों ने जो भी महत्वपूर्ण बातें कही हैं, उसके पीछे अवश्य ही कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य छुपा होता है। 

अब यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि बांस जलाने पर जो धुंआ होता है, वह धुंआ फेफड़ों से होकर जब खून में मिलता है, तो वह ऐसे तत्व छोड़ता है जो हमारी प्रजनन क्षमता को कम करता है। यानी आदमी को नपुंसकता की ओर धकेलता है, अर्थात नामर्दी की ओर धकेलता है। 

फेफड़ों में धुंए के कण जमा होने के कारण शरीर को आक्सीजन बहुत कम मिलती है, जिससे शरीर कामवासना को पूरी तरह से जी नहीं पाता। भले शरीर कितना ही पुष्ट क्यों न हो, लेकिन फेफड़े कार्बन से मुक्त होंगे तभी वह कामवासना में गहरे जा सकेगा। क्योंकि कामवासना में बहुत ज्यादा आक्सीजन की जरूरत होती है, जो फेफड़ों में जमा धुंए के कारण कम पहुंच पाती है। कामवासना को पूरी तरह से न जी पाने के कारण ही हमारा चित्त उससे मुक्त नहीं हो पाता। 

बांस का धुंआ हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है। इसीलिए पुराने लोगों ने कहा कि बांस को जलाने से वंश जलता है। तो अगरबत्ती क्यों नहीं जलानी चाहिए? क्योकि अगरबत्ती में जो तीली (लकड़ी) होती है, वह बांस की बनी हुई होती है। यदि हम अगरबत्ती जलाते हैं तो 'बांस' को भी जलाते हैं। और बांस को जलाना अर्थात अपना वंश जलाना!

बाँस को जलाना उचित नहीं माना जाता है,यहाँ तक कि जब हमारे हिंदू धर्म में विवाह में भी बाँस का सामान बेटी के विवाह में दिया जाता है जिसका अर्थ होता है -बांस अर्थात वंश जिससे बेटी जिस घर में जाए उस घर का वंश बढता रहे। लेकिन लोग देवी देवताओ को प्रसन्न करने बांस की लकडियों से बनी अगरबत्ती को धडल्ले से उपयोग करते है जो अनुचित है । 

इसके बजाय गाय के गोबर में गूगल, घी, चन्दन, कपूर आदि मिलाकर छोटी गोलियाँ बना कर सूखा कर उन्हें जलाना चाहिये इससे वातावरण शुद्ध होता है। शास्त्रों में भी बांस की लकड़ी को अनुचित बताते है गौ माँ के गोबर, गौमूत्र, घी, भीमसेनी कपूर, नीम से बनायीं गौ शाला में निर्मित धूप बत्ती का ही प्रयोग सर्वोत्तम व स्वास्थ्य वर्द्धक है। 10 ग्राम घी जलाने से एक टन वायु शुद्ध होती है। 

पूजा-अर्चना के लिए प्रयोग किए जानेवाली अगरबत्ती आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि अगरबत्ती के धूएं से फेफड़ों को हानि पहुंच सकती है। इसलिए अगरबत्तियों से दूरी बनाने में ही समझदारी है। अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के गिलिंग्स स्कूल ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ ने ये अध्ययन किया है। 

ताजा अनुसंधान में कहा गया है कि अगरबत्तियों को जलाने से प्रदूषणकारी गैसों का उत्सर्जन होता है जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल है। प्रदूषणकारी गैसों के कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है। 

धूप बहुत अच्छी होती है,इसलिए ऋषि मुनि भी हवन यज्ञ आदि करते रहे है, धूप जलाने से ऊर्जा का सृजन होता है, स्थान पवित्र हो जाता है व मन को शान्ति मिलती है। इनसे नकारात्मक ऊर्जाओं वाली वायु शुद्ध हो जाती है। इसलिए, प्रतिदिन धूप जलाना अति उत्तम और बहुत ही शुभ है। 

आइये जाने अगरबत्ती के कारण आपके स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों को-

आइये जानते हैं अगरबत्‍ती का धुआं किस तरह से आपके और आपके परिवार वालों के लिये जान का घतरा बन सकती है। 

कफ़ और छीकनें की समस्या बढ़ती है-
हाल ही के एक अध्ययन के अनुसार अगरबत्तियों से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। परिणामों से सिद्ध हुआ है कि घर के अंदर अगरबत्ती जलाने से वायु प्रदूषण होता है विशेष रूप से कार्बन मोनोऑक्साइड जिसके कारण फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन आ सकती है और श्वसन से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। जब श्वास के साथ आवश्यकता से अधिक मात्रा में धुंआ शरीर के अंदर चला जाता है तो अधिकाँश लोगों को अतिसंवेदनशीलता के कारण कफ़ और छीकनें की समस्या हो जाती है। 

अस्थमा का ख़तरा- इन अगरबत्तियों में सल्फ़र डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन और फॉर्मल्डेहाईड (कण तथा गैस के रूप में) होते हैं जिनके कारण नियमित रूप से इसके संपर्क में रहने पर श्वसन से संबंधित बीमारियाँ जैसे COPD और अस्थमा हो सकती हैं। इस समय श्वसन के माध्यम से जो धुंआ फेफड़ों में जाता है वह धूम्रपान के समय फेफड़ों में जाने वाले धुएं के समान होता है। 

आंखों और त्वचा की एलर्जी- यह एक सत्य बात है कि लंबे समय तक अगरबत्तियों का उपयोग करने से आँखों में विशेष रूप से बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियों की आँखों में जलन होती है। इसके अलावा संवेदनशील त्वचा वाले लोग भी जब नियमित तौर पर अगरबत्ती के जलने से निकलने वाले धुएं के संपर्क में आते हैं तो उन्हें भी त्वचा पर खुजली महसूस होती है

यह तंत्रिका से संबंधित लक्षण सक्रिय करती है नियमित तौर पर अगरबत्ती का उपयोग करने से जो समस्याएं आती हैं उनमें सिरदर्द, ध्यान केंद्रित करने में समस्या होना और विस्मृति आदि शामिल है। रक्त में जानलेवा गैसों की मात्रा बढ़ने से मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं जिसके कारण तंत्रिका से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। 

इसके कारण श्वसन कैंसर हो सकता है- क्या आपने कभी सोचा है कि अगरबत्ती का उपयोग करने से श्वसन मार्ग का कैंसर हो सकता है? लंबे समय तक अगरबत्ती का उपयोग करने से ऊपरी श्वास नलिका का कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है। यह भी साबित हुआ है कि अगरबत्ती का उपयोग करने साथ साथ, धूम्रपान करने वालों में भी ऊपरी श्वास नलिका के कैंसर की संभावना सामान्य लोगों की तुलना में अधिक होती है। 

यह शरीर में विषाक्त पदार्थों को जमा करती है- अध्ययनों से पता चला है कि जब अगरबत्ती को जलाया जाता है तो विषाक्त धुंआ निकलता है जिसमें लेड(सीसा), आयरन और मैग्नीशियम होता है जिसके कारण शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ती है। अगरबत्ती लगाने से जो धुंआ निकलता है उसके कारण रक्त में अशुद्धियों की मात्रा बढ़ जाती है। 

दिल को नुकसान पहुंचाती है- लम्बे समय तक अगरबत्तियों का उपयोग करने से हृदय रोग से होने वाली मृत्यु की दर 10% से 12% तक बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण अगरबत्ती जलाने पर श्वसन के द्वारा अंदर जाने वाला धुंआ है (जिसमें वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और कणिका तत्व होते हैं)। इससे रक्त वाहिकाओं की सूजन बढ़ जाती है तथा रक्त प्रवाह प्रभावित होता है जिसके कारण हृदय से संबंधित समस्याएं बढ़ जाती हैं। 

विनम्र निवेदन- अतः हमारा सभी हिन्दू भक्तो से आग्रह है कि पूजा पाठ में धुप बत्ती का प्रयोग करे अगरबत्ती न जलाये। सभी हिन्दुओ को इस बात से अवगत कराएं कि सनातन धर्म जो बॉस या बॉस से बनी अगरबत्ती जलाते है, वे अपने वंश का नाश करते है।उन्हें पूजा पाठ का फल भी नही मिलता। पितृदोष। पितरदोष में बढ़ोत्तरी होती हैं।

आगे आप स्वयं समझदार हैं।स्वयं निर्णय लीजिये, क्या उचित हैं और क्या अनुचित?
पंडित विशाल दयानन्द शास्त्री (ASTRO VASTU ADVISER)

अयोध्या की कहानी : इतिहासकारों की जुबानी

फ़ोटोयह लेख उन लोगों के लिय है जो हिंदुयों को कायर कहते नहीं चूकते, जो यह नहीं जानते कि रामजन्मभूमि की रक्षा और उद्धार के लिए कितने हिन्दू हंसते हंसते बलि चढ़ गये। पिछले पांच सौ साल के इतिहास में जिन घटनायों का उल्लेख इतिहासकारों ने लिखित रूप से किया है, वह यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। आशा है कि धर्म-निरपेक्षता की काली पट्टी पहने हिन्दू भाइयों की आँखें खुलेंगी यह पढ़ कर कि२ कैसे बाबर से ले कर मुलायम तक अत्याचारी सरकारों ने हिन्दू को दबाया, मरवाया और अधिकार से वंचित रखा। जय श्री राम!

बाबर और महात्मा श्यामानन्द जी
बाबर जब दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी। महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये। महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा ने योग और सिद्धियाँ प्राप्त करली और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्याति प्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा।

सूफी फकीरों के माध्यम से साजिश की शुरुयात
ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा। जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था, और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना। अत: जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंपकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया की यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा। धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए ।

कब्रिस्तानों के बहाने अयोध्या की भूमि पर कब्जा
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया। बाबा श्यामनन्दजी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की और तपस्या करने चले गए। मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए। 

राजा महताब सिंह
जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए। जिस समय मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने की घोषणा हुई उस समय भीटी के राजा महताब सिंह बद्रीनारायण की यात्रा करने के लिए निकले थे, अयोध्या पहुचने पर रास्ते में उन्हें ये खबर मिली तो उन्होंने अपनी यात्रा स्थगित कर दी और अपनी छोटी सेना में रामभक्तों को शामिल कर 1 लाख 74 हजार लोगो के साथ बाबर की सेना के 4 लाख 80 हजार सैनिकों से लोहा लेने निकल पड़े। 

मन्दिर का विध्वंस और मस्जिद का निर्माण
रामभक्तों ने सौगंध ले रक्खी थी रक्त की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे जब तक प्राण है तब तक मंदिर नहीं गिरने देंगे। रामभक्त वीरता के साथ लड़े ७० दिनों तक घोर संग्राम होता रहा और अंत में राजा महताब सिंह समेत सभी १ लाख ७४ हजार रामभक्त मारे गए। श्रीरामजन्मभूमि रामभक्तों के रक्त से लाल हो गयी। इस भीषण कत्ले आम के बाद मीरबांकी ने तोप लगा के मंदिर गिरवा दिया। मंदिर के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण हुआ, पानी की जगह मरे हुए हिन्दुओं का रक्त इस्तेमाल किया गया नीव में लखौरी इंटों के साथ ।

मृत हिंदुयों के खून से बनाया गया गारा
इतिहासकार कनिंघम अपने लखनऊ गजेटियर के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर लिखता है की एक लाख चौहतर हजार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के पश्चात मीरबाँकी अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान मे सफल हुआ और उसके बाद जन्मभूमि के चारो और तोप लगवा कर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की "जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना के लखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए अदेश दी गयी थी।

पंडित देवदीन पाण्डेय
उस समय अयोध्या से ६ मील की दूरी पर सनेथू नाम का एक गाँव के पंडित देवीदीन पाण्डेय ने वहां के आसपास के गांवों सराय सिसिंडा राजेपुर आदि के सूर्यवंशीय क्षत्रियों को एकत्रित किया। देवीदीन पाण्डेय ने सूर्यवंशीय क्षत्रियों से कहा भाइयों आप लोग मुझे अपना राजपुरोहित मानते हैं .. आप के पूर्वज श्री राम थे और हमारे पूर्वज महर्षि भरद्वाज जी। आज मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि को मुसलमान आक्रान्ता कब्रों से पाट रहे हैं और खोद रहे हैं इस परिस्थिति में हमारा मूकदर्शक बन कर जीवित रहने की बजाय जन्मभूमि की रक्षार्थ युद्ध करते करते वीरगति पाना ज्यादा उत्तम होगा।

पाण्डेय जी का पराक्रम
देवीदीन पाण्डेय की आज्ञा से दो दिन के भीतर ९० हजार क्षत्रिय इकठ्ठा हो गए दूर दूर के गांवों से लोग समूहों में इकठ्ठा हो कर देवीदीन पाण्डेय के नेतृत्व में जन्मभूमि पर जबरदस्त धावा बोल दिया। शाही सेना से लगातार ५दिनों तक युद्ध हुआ । छठे दिन मीरबाँकी का सामना देवीदीन पाण्डेय से हुआ उसी समय धोखे से उसके अंगरक्षक ने एक लखौरी ईंट से पाण्डेय जी की खोपड़ी पर वार कर दिया। देवीदीन पाण्डेय का सर बुरी तरह फट गया मगर उस वीर ने अपने पगड़ी से खोपड़ी से बाँधा और तलवार से उस कायर अंगरक्षक का सर काट दिया। इसी बीच मीरबाँकी ने छिपकर पहले ही से घायल देवीदीन पाण्डेय जी पर घातक वार किया और वो जन्मभूमि की रक्षा में वीरगति को प्राप्त हुए...जन्मभूमि फिर से 90 हजार हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। देवीदीन पाण्डेय के वंशज सनेथू ग्राम के ईश्वरी पांडे का पुरवा नामक जगह पर अब भी मौजूद हैं। 

हंसवर-नरेश रणविजय सिंह और उनकी रानी जयराजकुमारी
पाण्डेय जी की मृत्यु के १५ दिन बाद हंसवर के महाराज रणविजय सिंह ने सिर्फ २५ हजार सैनिकों के साथ मीरबाँकी की विशाल और शस्त्रों से सुसज्जित सेना से रामलला को मुक्त कराने के लिए आक्रमण किया। 10 दिन तक युद्ध चला और महाराज जन्मभूमि के रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हो गए। जन्मभूमि में 25 हजार हिन्दुओं का रक्त फिर बहा। रानी जयराज कुमारी हंसवर के स्वर्गीय महाराज रणविजय सिंह की पत्नी थी। जन्मभूमि की रक्षा में महाराज के वीरगति प्राप्त करने के बाद महारानी ने उनके कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया और तीन हजार नारियों की सेना लेकर उन्होंने जन्मभूमि पर हमला बोल दिया और हुमायूं के समय तक उन्होंने छापामार युद्ध
जारी रखा। 

स्वामी महेश्वरानन्द जी
रानी के गुरु स्वामी महेश्वरानंद जी ने रामभक्तों को इकठ्ठा करके सेना का प्रबंध करके जयराज कुमारी की सहायता की। साथ ही स्वामी महेश्वरानंद जी ने सन्यासियों की सेना बनायीं इसमें उन्होंने २४ हजार सन्यासियों को इकठ्ठा किया और रानी जयराज कुमारी के साथ, हुमायूँ के समय में कुल १० हमले जन्मभूमि के उद्धार के लिए किये। १०वें हमले में शाही सेना को काफी नुकसान हुआ और जन्मभूमि पर रानी जयराज कुमारी का अधिकार हो गया। लेकिन लगभग एक महीने बाद हुमायूँ ने पूरी ताकत से शाही सेना फिर भेजी, इस युद्ध में स्वामी महेश्वरानंद और रानी कुमारी जयराज कुमारी लड़ते हुए अपनी बची हुई सेना के साथ मारे गए और जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। श्रीराम जन्मभूमि एक बार फिर कुल 24 हजार सन्यासियों और 3 हजार वीर नारियों के रक्त से लाल हो गयी। 

स्वामी बलरामचारी
रानीा जयराज कुमारी और स्वामी महेश्वरानंद जी के बाद यद्ध का नेतृत्व स्वामी बलरामचारी जी ने अपने हाथ में ले लिया। स्वामी बलरामचारी जी ने गांव गांव में घूम कर रामभक्त हिन्दू युवकों और सन्यासियों की एक मजबूत सेना तैयार करने का प्रयास किया और जन्मभूमि के उद्धारार्थ २० बार आक्रमण किये. इन २० हमलों में कम से कम १५ बार स्वामी बलरामचारी ने जन्मभूमि पर अपना अधिकार कर लिया मगर ये अधिकार अल्प समय के लिए रहता था थोड़े दिन बाद बड़ी शाही फ़ौज आती थी और जन्मभूमि पुनः मुगलों के अधीन हो जाती थी..जन्मभूमि में लाखों हिन्दू बलिदान होते रहे। उस समय का मुग़ल शासक अकबर था। शाही सेना हर दिन के इन युद्धों से कमजोर हो रही थी.. अतः अकबर ने बीरबल और टोडरमल के कहने पर खस की टाट से उस चबूतरे पर ३ फीट का एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया। लगातार युद्ध करते रहने के कारण स्वामी बलरामचारी का स्वास्थ्य गिरता चला गया था और प्रयाग कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी तट पर स्वामी बलरामचारी की मृत्यु हो गयी|

अकबर की कूटनीति और औरंगजेब की कट्टरता 
इस प्रकार बार-बार के आक्रमणों और हिन्दू जनमानस के रोष एवं हिन्दुस्थान पर मुगलों की ढीली होती पकड़ से बचने का एक राजनैतिक प्रयास की अकबर की इस कूटनीति से कुछ दिनों के लिए जन्मभूमि में रक्त नहीं बहा। यही क्रम शाहजहाँ के समय भी चलता रहा। औरंगजेब के हाथ सत्ता आई वो कट्टर मुसलमान था और उसने समस्त भारत से काफिरों के सम्पूर्ण सफाये का संकल्प लिया था। उसने लगभग 10 बार अयोध्या मे मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलकर यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ डाला। 

संत वैष्णवदास जी
औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज जी के शिष्य श्री वैष्णवदास जी ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ 30 बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों मे अयोध्या के आस पास के गांवों के सूर्यवंशीय क्षत्रियों ने पूर्ण सहयोग दिया जिनमे सराय के ठाकुर सरदार गजराज सिंह और राजेपुर के कुँवर गोपाल सिंह तथा सिसिण्डा के ठाकुर जगदंबा सिंह प्रमुख थे। ये सारे वीर ये जानते हुए भी की उनकी सेना और हथियार बादशाही सेना के सामने कुछ भी नहीं है अपने जीवन के आखिरी समय तक शाही सेना से लोहा लेते रहे। लम्बे समय तक चले इन युद्धों में रामलला को मुक्त कराने के लिए हजारों हिन्दू वीरों ने अपना बलिदान दिया और अयोध्या की धरती पर उनका रक्त बहता रहा।

ठाकुर गजराज सिंह
ठाकुर गजराज सिंह और उनके साथी क्षत्रियों के वंशज आज भी सराय मे मौजूद हैं। आज भी फैजाबाद जिले के आस पास के सूर्यवंशीय क्षत्रिय सिर पर पगड़ी नहीं बांधते, जूता नहीं पहनते, छता नहीं लगाते, उन्होने अपने पूर्वजों के सामने ये प्रतिज्ञा ली थी की जब तक श्री राम जन्मभूमि का उद्धार नहीं कर लेंगे तब तक जूता नहीं पहनेंगे,छाता नहीं लगाएंगे, पगड़ी नहीं पहनेंगे। 1640 ईस्वी में औरंगजेब ने मन्दिर को ध्वस्त करने के लिए जबांज खाँ के नेतृत्व में एक जबरजस्त सेना भेज दी थी, बाबा वैष्णव दास के साथ साधुओं की एक सेना थी जो हर विद्या मे निपुण थी इसे चिमटाधारी साधुओं की सेना भी कहते थे । जब जन्मभूमि पर जबांज खाँ ने आक्रमण किया तो हिंदुओं के साथ चिमटाधारी साधुओं की सेना की सेना मिल गयी और उर्वशी कुंड नामक जगह पर जाबाज़ खाँ की सेना से सात दिनों तक भीषण युद्ध किया । चिमटाधारी साधुओं के चिमटे के मार से मुगलों की सेना भाग खड़ी हुई। इस प्रकार चबूतरे पर स्थित मंदिर की रक्षा हो गयी।

बाबा वैष्णव दास और दशम गुरु गोबिंद सिंह जी
जाबाज़ खाँ की पराजित सेना को देखकर औरंगजेब बहुत क्रोधित हुआ और उसने जाबाज़ खाँ को हटाकर एक अन्य सिपहसालार सैय्यद हसन अली को 50 हजार सैनिकों की सेना और तोपखाने के साथ अयोध्या की ओर भेजा और साथ मे ये आदेश दिया की अबकी बार जन्मभूमि को बर्बाद करके वापस आना है, यह समय सन् 1680 का था। बाबा वैष्णव दास ने सिक्खों के गुरु गुरुगोविंद सिंह से युद्ध मे सहयोग के लिए पत्र के माध्यम संदेश भेजा। पत्र पाकर गुरु गुरुगोविंद सिंह सेना समेत तत्काल अयोध्या आ गए और ब्रहमकुंड पर अपना डेरा डाला। ब्रहमकुंड वही जगह जहां आजकल गुरुगोविंद सिंह की स्मृति मे सिक्खों का गुरुद्वारा बना हुआ है। बाबा वैष्णव दास एवं सिक्खों के गुरुगोविंद सिंह रामलला की रक्षा हेतु एकसाथ रणभूमि में कूद पड़े ।इन वीरों कें सुनियोजित हमलों से मुगलो की सेना के पाँव उखड़ गये सैय्यद हसन अली भी युद्ध मे मारा गया। 

वर्षों तक मन्दिर का प्रतीक रहा एक गड्ढा
औरंगजेब हिंदुओं की इस प्रतिक्रिया से स्तब्ध रह गया था और इस युद्ध के बाद 4 साल तक उसने अयोध्या पर हमला करने की हिम्मत नहीं की। औरंगजेब ने सन् 1664 मे एक बार फिर श्री राम जन्मभूमि पर आक्रमण किया। इस भीषण हमले में शाही फौज ने लगभग 10 हजार से ज्यादा हिंदुओं की हत्या कर दी नागरिकों तक को नहीं छोड़ा। जन्मभूमि हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गयी। जन्मभूमि के अंदर नवकोण के एक कंदर्प कूप नाम का कुआं था, सभी मारे गए हिंदुओं की लाशें मुगलों ने उसमे फेककर चारों ओर चहारदीवारी उठा कर उसे घेर दिया। आज भी कंदर्पकूप “गज शहीदा” के नाम से प्रसिद्ध है,और जन्मभूमि के पूर्वी द्वार पर स्थित है। शाही सेना ने जन्मभूमि का चबूतरा खोद डाला बहुत दिनो तक वह चबूतरा गड्ढे के रूप मे वहाँ स्थित था। औरंगजेब के क्रूर अत्याचारो की मारी हिन्दू जनता अब उस गड्ढे पर ही श्री रामनवमी के दिन भक्तिभाव से अक्षत, पुष्प और जल चढाती रहती थी।

अमेठी-नरेश गुरुदत्त सिंह और पिपर-नरेश राजकुमार सिंह
बाब सहादत अली के समय 1763 ईस्वी में जन्मभूमि के रक्षार्थ अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाँच आक्रमण किये गये जिसमें हर बार हिन्दुओं की लाशें अयोध्या में गिरती रहीं। लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है की “लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजत दे दी पर सच्चा मुसलमान होने के नाते उसने काफिरों को जमीन नहीं सौंपी।" लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62 नासिरुद्दीन हैदर के समय मे मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गये। परन्तु तीसरे आक्रमण में डटकर नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने लगी , जन्मभूमि के मैदान मे हिन्दुओं और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । इस संग्राम मे भीती, हंसवर, मकर ही, खजुरहट, दीयरा अमेठी के राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे।

चिम्टाधारी साधुयों का योगदान
हारती हुई हिन्दू सेना के साथ वीर चिमटाधारी साधुओं की सेना आ मिली और इस युद्ध मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के बाद विशाल शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया और हजारों हिन्दुओं को मार डाला गया। जन्मभूमि में हिन्दुओं का रक्त प्रवाहित होने लगा। नावाब वाजिदअली शाह के समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया। फैजाबाद गजेटियर में कनिंघम ने लिखा "इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ। दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर युद्ध में सैकड़ों हिन्दुओं के मारे जाने के बावजूद हिन्दुओं नें राम जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। क्रुद्ध हिंदुओं की भीड़ ने कब्रें तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को गिराने लगे और पूरी ताकत से मुसलमानों को मार-मार कर अयोध्या से खदेड़ना शुरू किया। मगर हिन्दू भीड़ हर बार कि तरह मुसलमान स्त्रियों और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई।

पुनः निर्माण
अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ था। इतिहासकार कनिंघम लिखता है की ये अयोध्या का सबसे बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था। हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया। चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया। जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी। कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई और कालांतर में जन्मभूमि फिर हिन्दुओं के हाथों से निकल गयी।

१८५७ की क्रान्ति
सन 1857 की क्रांति मे बहादुर शाह जफर के समय में बाबा रामचरण दास ने एक मौलवी आमिर अली के साथ जन्मभूमि के उद्धार का प्रयास किया पर 18 मार्च सन 1858 को कुबेर टीला स्थित एक इमली के पेड़ मे दोनों को एक साथ अंग्रेज़ो ने फांसी पर लटका दिया। जब अंग्रेज़ो ने ये देखा कि ये पेड़ भी देशभक्तों एवं रामभक्तों के लिए एक स्मारक के रूप मे विकसित हो रहा है तब उन्होने इस पेड़ को कटवा कर इस आखिरी निशानी को भी मिटा दिया...इस प्रकार अंग्रेज़ो की कुटिल नीति के कारण रामजन्मभूमि के उद्धार का यह एकमात्र प्रयास विफल हो गया |

अन्तिम बलिदान
३० अक्टूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने वोट-बैंक के लालची मुलायम सिंह यादव के
द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। लेकिन २ नवम्बर १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें हज़ारों रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। सरकार ने मृतकों की असली संख्या छिपायी परन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार सरयू तट रामभक्तों की लाशों से पट गया था। ४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया। लाखों राम भक्त 6 दिसम्बर1992 को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। परन्तु हिन्दू समाज के अन्दर व्याप्त घोर गठनहीनता एवं नपुंसकता के कारण आज भी हिन्दुओं के सबसे बड़े आराध्य भगवान श्रीराम एक फटे हुए तम्बू में विराजमान हैं।

क्या अब भी आप कहेंगे 'विवादास्पद स्थल'?
जिस जन्मभूमि के उद्धार के लिए हमारे पूर्वजों ने अपना रक्त पानी की तरह बहाया। आज वही हिन्दू बेशर्मी से इसे "एक विवादित स्थल" कहता है। सदियों से हिन्दुओं के साथ रहने वाले सलमानों ने आज भी जन्मभूमि पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। वो यहाँ किसी भी हाल में मन्दिर नहीं बनने देना चाहते हैं ताकि हिन्दू हमेशा कुढ़ता रहे और उन्हें नीचा दिखाया जा सके। जिस कौम ने अपने ही भाईयों की भावना को नहीं समझा वो सोचते हैं हिन्दू उनकी भावनाओं को समझे। आज तक किसी भी मुस्लिम संगठन ने जन्मभूमि के उद्धार के लिए आवाज नहीं उठायी, प्रदर्शन नहीं किया और सरकार पर दबाव नहीं बनाया आज भी वे बाबरी-विध्वंस की तारीख 6 दिसम्बर को काला दिन मानते हैं। और मूर्ख हिन्दू समझता है कि राम जन्मभूमि राजनीतिज्ञों और मुकदमों के कारण उलझा हुआ है।

देश के हिंदुयों को आवाहन
ये लेख पढ़कर जिन हिन्दुओं को शर्म नहीं आयी वो कृपया अपने घरों में राम का नाम ना लें.. अपने रिश्तेदारों से कह दें कि उनके मरने के बाद कोई "राम नाम" का नारा भी नहीं लगाएं। हम 21वीं सदी के हिन्दू एक दिन श्रीराम जन्मभूमि का उद्धार कर वहाँ मन्दिर अवश्य बनाएंगे। इस भारत को अखण्ड बनाकर एक बार फिर से रामराज्य लाएंगे चाहे अभी और कितना ही बलिदान क्यों ना देना पड़े। 
(हिन्दू जागरण से साभार)

शनिवार, 3 जून 2017

भारत में वामपंथी पार्टी

वामपंथियों के कर्म जो सबको पता होना चाहिए ... भारत में वामपंथी पार्टी नहीं थी, भारत में वामपन्थियों का 1917 के पहले कोई इतिहास नहीं है।
"रूस में त्सारयुग के पतन के बाद भारत में विदेशी हुकूमत के नौकरशाही का पतन के युग की शुरुवात हो चुकी है" - 1917 में कलकत्ता में छपी एक राष्ट्रवादी पत्रिका दैनिक बसुमति में एक लेख इस शीर्षक के साथ आया था। .. "अब हमारा समय आ रहा है, भारत भी मुक्त होगा, भारत के बेटों को सही और न्याय के लिए खड़ा होना होगा जैसा कि रूसियों ने किया है ये Home Rule League के पर्चों में लिखा था जिसका शीर्षक था "Lessons from Russia" - ये पर्चा मद्रास से उसी समय 1917 में प्रकाशित किया। इसी के साथ रूस से प्रभावित एक नयी खेप का भारत में जन्म हुआ जिसका नाम था "communism" ..

यूरोप में जन्मे कम्युनिज्म के सिद्धांतों से प्रभवित ये गुट यूरोप की तरफ भाग खड़ा हुआ और उसने उस ग्रुप से हाथ मिलाया जिसका नाम था Communist International यानी CI, जिसका पहला नेता बन के उभरे M. N. Roy जो अमरीका और मैक्सिको होते हुए अंत में रूस पहुंचे। इधर इस ग्रुप के लोग भारत के कलकत्ता, मद्रास, कानपूर, लाहौर में वामपन्थ के पर्चे बांटते थे और नारे लगाते थे - भारत के रिपोर्ट और M. N. Roy के रूस के सर्वहारा तानाशाह के बीच सम्बन्धो से उभरा - Party in Exile जिसका नाम रखा Communist Party of India जिसको रूस में बनाया गया। इसको लेनिन का आशीर्वाद प्राप्त था और बाद में स्टालिन ने इनको बौद्धिक विचार प्रदान किये। ये पार्टी शुरू से ही विदेशी कम्युनिस्ट्स संस्थानों के हाथों में खेलने लगी .... इसके बाद इन लोगों ने पूरी तरह से विदेशी कम्युनिस्ट ताकतों के भारत में घुसाने के लिए वो सारे काम किये जिसको जानना लोगों के लिए जरूरी हो गया है .. 
1. कम्युनिस्टों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन को पूंजीपति और 'फासीवादी' ताकतों के सहयोग के रूप में वर्णन किया और इसलिए उन्होंने ब्रिटिश प्रयासों का समर्थन किया। मतलब उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में राष्ट्रवादियों की जगह अंग्रेज़ों का साथ दिया। इन्होने भारत को अंग्रज़ों द्वारा डोमिनियन स्टेट बनाये रखने के लिए चुनाव लड़ा और अंग्रेज़ों के साथ खड़े रहे। 
2. कम्युनिस्टों ने ब्रिटिश शासन के समय प्रस्ताव दिया था कि वो भारत के कई टुकड़े करके बहुराष्ट की नीति पर चलना चाहते थे - उन्होंने जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया और पाकिस्तान बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। 
3. कम्युनिस्टों के लिए भारतीय राष्ट्रवाद बुर्जुआ राष्ट्रवाद है लेकिन उनके लिए रूसी / चीनी राष्ट्रवाद सर्वहारा राष्ट्रवाद है। "एक बार मार्क्सवादी कीड़ा किसी को काटता है, तो वह अपने अंदर के राष्ट्रवाद को ख़त्म कर देता है, अपने सभ्यता और विरासत से खुद को दूर करता है"
4. जब से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) का जन्म 1920 के दशक के मध्य में हुआ था, तब से वह इस देश के पूर्व-इस्लामी अतीत पर मुस्लिम मस्तिष्क को भ्रमित कर रहा था और खूब सफल हुआ, कम्युनिस्टों के प्रचारित इन्ही सिद्धांतों के कारण भारत के विभाजन की भूमि तैयार हुई। कम्युनिस्टों ने विवादास्पद आर्यन आक्रमण सिद्धांत को जन्म दिया इसके साथ साथ द्रविड़ियों के निष्कासन को दक्षिणी भारत तक समझाया। जबकि ये पश्चिम के इतिहासकारों द्वारा मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिंदुओं के उत्पीड़न बताया था।
5. सीपीआई ने मुस्लिम सदस्यों को मुस्लिम लीग के रैंक में प्रवेश करने के लिए भेजा था (Pakistan: Military Rule or People’s Power by Tariq Ali, London 1970, page 31) मुस्लिम लीग में पूंजीपतियों के गढ़ को मजबूत करने के लिए सीपीआई ने मुस्लिम लीग में प्रवेश किया था, ये स्तालिन के "theory of revolution by stages” (Ibid. Page 32) को पालन करने की एक योजना थी। पंजाब मुस्लिम लीग का घोषणापत्र प्रसिद्ध भारतीय कम्युनिस्ट वकील, डैनील लतीफी द्वारा लिखा गया था" (Ibid.),
6. सीपीआई ने भारत के विभाजन का समर्थन करते हुए, हिटलर के खिलाफ ब्रिटिश युद्ध को मुस्लिम लीग के सहयोगी रवैये की सराहना की, जिसे 'इंपीरियल वॉर' कहा गया था। सीपीआई ने जर्मनी के खिलाफ अंग्रेज़ों का साथ इसलिए दिया क्योंकि सोवियत संघ के स्टालिन ने संसार भर के कम्युनिस्ट लोगों को हिटलर के खिलाफ जंग में कूदने को कहा था। 
7. सीपीआई नेताओं ने जुलूस और प्रदर्शनों का आयोजन करके पाकिस्तान आंदोलन को समर्थन दिया था। ई.एम.एस. नामबूदरीपद और ए.के. गोपालन (दोनों सीपीआई के नेता थे) ने मुस्लिमों के साथ जुलूस का नेतृत्व किया, 'पाकिस्तान जिंदाबाद' और 'मोप्लिस्तान जिंदाबाद' चिल्लाकर नारे लगाए। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ख्वाजा अहमद अब्बास, जो स्वयं वामपंथी थे, उनका यह कहना था कि सीपीआई ने भारत को मार डाला था, क्योंकि इन्होने मुस्लिम अलगाववादियों को वैचारिक आधार प्रदान किया गया था (Pakistan: From Jinnah to Jehad by S.K.Datta and Rajeev Sharma, 2002, Page 18)
8. भारत का विभाजन हुआ लेकिन सीपीआई को सर्वहारा की तानाशाही स्थापित करने के लिए कोई लाभ नहीं मिला। पाकिस्तान के मुस्लिम लीग सरकार ने पार्टी कार्यकर्ताओं का बुरी तरह से इलाज किया और वहां से उखाड़ फेंका। पाकिस्तान कम्युनिस्टों के साथ बहुत कठोरता से निपटा। डा. अशरफ और सज्जाद जहीर, जो भारत से पाकिस्तान गए थे, वहां कम्युनिस्ट आंदोलन को गति देने के लिए जेल में सीधे पहुंचे। जेल से बाहर निकलने में दस साल लग गए और उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया (Muslim Politics in India by Hamid Dalwai, Hind Pocket Books, page 58)
9. मार्क्सवादी इतिहासकार, जिन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस के शासनकाल में स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को लेखन में अपनी आधिकारिकता बनाए रखी थी, ने भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों की बर्बर भूमिका को ढंक दिया और हिंदुओं के खिलाफ उनकी कट्टरता को छिपा दिया। वे हिंदू मंदिरों को तोड़ने को बर्बरता की बजाय आर्थिक आधार बताना पसंद करते थे। सांप्रदायिक मुसलमानों की विशिष्टतावादी और एकपक्षीय विचारधारा को सामाजिक समानता के लिए विचारधारा के रूप में पेश करते हुए उन्हें इस देश की सांस्कृतिक परंपरा को बदनाम करने में गर्व महसूस होता है। यह हर दंगों के पीछे हिंदू राष्ट्रवादियों की निन्दा करते थे और उनके धार्मिक अनुष्ठान को मुख्य कारण बताते रहे। शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी बहस छिड़ गया, वामपंथियों ने अपनी आंखें बंद कर के शाहबानो मामले में कट्टरपंथियों का साथ दिया। 
10. आज़ाद भारत में राजनीतिक पहचान के लिए मुस्लिम कट्टर सांप्रदायिक लोगों की शासन करने की आकांक्षा बरकरार रही। सीपीआई और सीपीआईएम दोनों ने भारतीय संघ मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) को राजनीतिक सत्ता का पर्याप्त हिस्सा देकर मुस्लिम सांप्रदायिक मानसिकता को समर्थन दिया। केरल में आज़ादी के बाद नई कट्टरवादी AIML के साथ गठबंधन सरकार बनाया। उन्होंने "मालाबार में नया मुस्लिम बहुसंख्यक जिला बनाने के लिए आईयूएमएल के साथ मिलकर काम किया और इसका नाम मल्लपुरम रखा" (Communism in Indian Politics by Bhabani Sen Gupta, Columbia University Press, 1972,Page 188). सन 1980 में भारतीय मुस्लिमों ने अफगानिस्तान के सोवियत कब्जे के खिलाफ यू.एस.ए. को नैतिक समर्थन दिया। सीपीआई और सीपीआईएम इस मुद्दे पर पूरी तरह मौन रहे। उन्होंने नई सहस्राब्दी में अफगानिस्तान में तालिबान सरकार पर अमेरिकी हमले के खिलाफ अपने युद्ध के दौरान भारतीय मुसलमानों को पूरी तरह से समर्थन किया। 
 
11. ये शुरू से ही हथियार माफिया रहे हैं। 1919 - 20 में सोवियत संघ के पक्ष में पठानों को लड़ने के लिए वामपंथी नेता M N Roy ही Moscow से ताशकन्द तक एक ट्रैन भर के हथियार लाया था। इन हथियारों का उपयोग पठनों ने भारत के पंजाबी हिन्दुओं का सफाया करने के लिए इस्तेमाल किया था। 
 
12. पश्चिम बंगाल में 38 वर्ष तक मार्क्सवादी सरकार के शासन का रहस्य मुस्लिमों के चुनावी समर्थन के साथ है, जो मतदाताओं के करीब 25 प्रतिशत का गठन करते हैं। 1989 में मार्क्सवादी सरकार के पश्चिम बंगाल माध्यमिक बोर्ड ने 28 अप्रैल 1989 को circular जारी किया था 28 April 1989 (Number Syl/89/1), जिससे मध्यकालीन इतिहास काल के बारे में बहुत सारी चीजों को पुस्तकों से हटा दिया गया क्योंकि बंगाल के कट्टरपंथी मुस्लिम नहीं रखना चाहते थे (Islamization of Pakistan by Y.C.Ross, 2003, New Delhi, page 16-
17). बांग्लादेश मुस्लिम घुसपैठ पर चुप्पी राखी राष्ट्रीय हितों की कीमत पर, अपने वोटों को बेहतर बनाने के लिए है। पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में कम्युनिस्ट शासन ने बांग्लादेश से मुसलमानों की घुसपैठ की अनुमति दी थी। यूपीए सरकार रहने तक मार्क्सवादी एक प्रॉक्सी सरकार की तरह कार्य कर रहे थे और यूपीए सरकार को मुस्लिमों को खुश करने के लिए केवल भारतीय इतिहास से छेड़छाड़ किया और पतन कराया। 
 
13. कम्युनिस्ट वही माफिया है जिसने बीसवीं और शुरुआती तीसवां दशक में स्वतंत्रता के लिए राष्ट्र की लड़ाई के खिलाफ युद्ध किया था, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भारतीय पूंजीपतियों और जमींदारों की साजिश मानते थे। 
14. वामपंथी वो है जिन्होंने 1942 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ हाथ मिला लिया था और ब्रिटिश संरक्षण बड़े पैमाने पर पाया। 1942-45 के दौरान ब्रिटिश पुलिस के लिए ये देशभक्त आज़ादी के सिपाहियों के खिलाफ जासूसी और मुखबिरी करते थे। 
15 . आज़ादी की लड़ाई के समय गाँधी जी इन वामपंथियों के अंग्रेज़ों की दलाली से इतना तंग आ गए थे कि उन्होंने इनके नेता CP Joshi को चिट्ठी लिखा था जिसका उसने बड़ी गन्दी तरीके से बेइज़्ज़त करते हुए जवाब दिया था। (Letter and Reply attached). 
16. वामपन्थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपने लिए बड़ा खतरा माना था क्योंकि उनका मानना था कि अगर आज़ाद भारत नेताजी के हाथों से संचालित हुआ तो इनका कोई भविष्य नहीं है और भारत के विभाजन का इनका सपना भी ख़त्म हो जाएगा। इसलिए अंग्रेज़ों के साथ मिलकर इन्होने नेताजी के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया जो अंग्रेज़ों के पैसों से प्रायोजित था। इनके दुष्प्रचार और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से नफरत उस समय इनके द्वारा इनके "People's War" नामक पत्रिका में छापे गाये कार्टून में दीखता है। अगर कोई कम्युनिस्ट खुद को नेता जी का समर्थक बताए और उनको कम्युनिस्ट साबित करने की कोशिश करे तो ये बहुमूल्य सबूत उनके मुंह पर बिना झिझक फेंक दीजिये। 
 
17. वामपन्थियों ने एक बहुत बड़ा दुष्चक्र 1959 में रचा था। इन्होने भारतीय सेना में अपने जासूस घुसाने और सेना में तोड़ - फोड़ कराने का षड्यंत्र रचा था। इनके अनुसार सेना में दो फाड़ हो जाता और एक अंग को लेकर ये चीन की मदद से 1962 में सशत्र विद्रोह कर देते। फिर भारत पर इनके चेयरमैन माओ - त्से - तुंग का अधिकार हो जाता। फिर ये माओ के निर्देशन में भारत पर राज करते। (CIA notes/Document given to GOI - attached)

18. 1948 में आज़ाद भारत गणराज्य के विरूद्ध इन्होने हैदराबाद के निजाम और उसके रजाकारों के साथ हाथ मिलाकर सशस्त्र विद्रोह किया था। इन्होने तेलंगाना इलाको में एक सर्वहारा क्रांति के नाम पर 1948 से 1953 तक लगभग 2 लाख गरीब और निर्दोष किसानों को मरवा डाला था। 

19. कम्युनिस्टों ने 1948 में श्री रामकृष्ण को समलैंगिक, स्वामी विवेकानंद को एक हिंदू साम्राज्यवादी, श्री अरबिंदो को एक युद्ध पिपासु, श्री रबींद्रनाथ टैगोर को एक दलाल, और स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों जैसे कि श्री सरदार पटेल को बिड़ला और टाटा के सूअर और हरामखोर जैसे शब्दों से बुलाया था। 

20. कम्युनिस्ट वही माफिया गिरोह है जो चीन के समर्थन में खुले तौर पर बाहर आ गया था जब चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, 1959 में दलाई लामा को अपने हजारों अनुयायियों के साथ निकाल दिया। आखिरकार 1962 में खुद भारत पर आक्रमण किया। 1962 के चीन आक्रमण में वामपन्थियों ने चीन का साथ दिया ... "बीजिंग नजदीक, दिल्ली दूर" का नारा लगाया। कम्युनिस्ट वही माफिया गिरोह है, जिसने 1967- 69 के माध्य से अपने अध्यक्ष के रूप में माओ त्से-तुंग का स्वागत किया था, पश्चिम बंगाल और अन्य जगहों पर आतंकवाद और हत्याओं का अम्बार लगा दिया, और मारे हुए पुलिसकर्मियों के सिर के साथ फुटबॉल खेला था। 

भारतीय जनता को इन वामपन्थियों के हर षड्यंत्र, सोच और ऐतिहासिक कर्मों के बारे में पता होना चाहिए .... जिससे लोग इनके बहकावे में न आएं और देश के समझदार नागरिक और राष्ट्र प्रहरी बने रहे।
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वामपंथ होता क्या है?

भारत में एक बहुत बड़े वामपंथी हुए थे, शायद वामपंथ के पुरोधा थे, मानवेंद्रनाथ राय। एक बार मानवेंद्रनाथ राय (M.N. RAY) साहेब, लेनिन से मिलने गए। वहां उन्होंने जो बातें की, उनके जाने के बात लेनिन को सहयोगियों ने बताया की ये बन्दा तो हम लोगों से भी बड़ा कम्युनिस्ट है। इसका कारण यह है की कोई भी भारतीय जब भारतीयता के विरुद्ध खड़ा होता है तो बोल बचन करने में यह तक भूल जाता है कि जिस धरती की कोख में खेल कर वह बड़ा हुवा है, उसके खिलाफ भी बोलकर गर्व महसूस करने लगता है। तो ये कॉमरेड साहेब वापिस भारत आ गए। भले ये बहुत बड़े वामपंथी थे, लेकिन थे सोचने वाले और चिंतन करने वाले। सत्य की खोज करते करते एक दिन जो सत्य था समझ में आ ही गया और भाई साहब का वामपंथ से मोहभंग हो गया। और उन्होंने अपने जीवन का सार दाो लाइनों में लिखा जो हर एक को पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें पता लगे आखिर वामपंथ होता क्या है-

"जो अपनी नीम जवानी में वामपंथी नहीं बने वो मूर्ख है, 
और जो प्रौढ़ावस्था तक भी वामपंथी बना रहे वो महामूर्ख है"

उनके इस व्यंग्य, जो ज़िंदगी ने उन्हें सिखाया,  इससे स्पष्ट होता है, कि वामपंथ कुछ भी नहीं बल्कि एक टीन एज (थर्टीन से लेकर नाइनटीन तक की आयु का काल) का प्राकृतिक विरोधी स्वभाव है। जब उन्हें लगता है कि  माँ बाप कुछ नहीं समझते, टीचर बेवकूफ है, सब पुरातन पंथी है, दुनिया में खाली हम ही होशियार है। ये संस्कार वंस्कार सब फालतू बातें हैं।

लेकिन जब बन्दा दुनियादारी में आता है, खुद के बच्चे होते है, तब उसका सारा वामपंथ हवा हो जाता है। तो विद्रोही आयु (टीन एज) तक ही वामपंथ प्राकृतिक रूप से आता है जब आदमी में अक्ल नहीं होती। वामपंथ और अक्ल का साथ रहना नामुमकिन है। समझाना मुश्किल है। उससे कभी मत उलझना। वो कभी समझ नहीं पाएगा (वस्तुतः वह समझना ही नहीं चाहेगा)।

पुरुलिया हथियार काण्ड – 1

Kim Davy... उर्फ़ Niels Holck उर्फ़ Niels Christian Nielsen नाम सुना होगा... नहीं सुना... बता देते हैं। पश्चिम बंगाल में एक जिला है पुरुलिया... 17 दिसम्बर 1995 के दिन यहाँ Antonov An-26 हवाई जहाज़ से हथियारों का जखीरा गिराया गया था जो चार गावों में फ़ैल गया था । इसमें कई सौ AK 47 और 10 लाख से ऊपर कारतूस थे। Kim Davy उसी का मुख्य अभियुक्त है। उस समय पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन था और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। 

Kim Davy... इसने बयान दिया था कि कांग्रेस ने RAW के कुछ अधिकारीयों और ब्रिटिश ख़ुफ़िया MI5 की मदद से ये हथियार गिराया था, ये हथियार वामपन्थियों के खिलाफ आनदमार्गियों को सप्लाई करना था... उसने कहा था कि सांसद पप्पू यादव के साथ मिलकर नरसिम्हा राव सरकार ने वामपंथियों की सरकार गिराने के लिए खेल खेला था...... हथियार उस समय के बंगाल सरकार की पुलिस ने पकड़ लिए... अगली खेप आ रही थी तो जहाज़ भारतीय वायु सेना के राडार पे आ गया और वायुसेना ने MIG 30 से उसको घेरकर पकड़ लिया। सारे विदेशी अपराधी पकड़ लिए जिनको बाद में देश से तत्कालीन केंद्र सरकार ने भगा दिया। डील के अनुसार पप्पू यादव की मदद से कांग्रेस सरकार ने उसको देश छोड़ के भागने में मदद किया था... हालाँकि पापु यादव लालू की पार्टी से सांसद होता था लेकिन कांग्रेस ने हमेशा उसको सांसद बनने में मदद किया। पप्पू यादव पर एक हत्या का जुर्म साबित हुवा, उम्र कैद हुई और मजबूरी में लालू ने उसको पार्टी से निकाला। इस कारण वो चुनाव नहीं लड़ सका तो कांग्रेस ने उसकी पत्नी रजीता रंजन को सांसद बनाया जिसमें लालू ने मदद किया ..
अटल सरकार आने पर इसके प्रत्यर्पण के लिए डेनमार्क से बात शुरू हुई लेकिन कोई फायदा न हुवा... डेनमार्क सरकार ने प्रत्यर्पण को मन कर दिया। अटल सरकार ने कई मोर्चों पर उसके प्रत्यर्पण की मांग रखी... लेकिन असफल रहे। केस इतना कमजोर तब तक हो चूका था कि जो क्रू मेंबर अभियुक्त के रूप में पकडे गए थे वो सब छूट गए... रूस अपना एक नागरिक भी छुड़ा ले गया... उधर एक ब्रिटिश नागरिक को भी 2004 शुरू होते ही क्षमादान मिल गया। 2004 में कांग्रेस की UPA सरकार आ गयी और उन्होंने इस मामले को गोल मोल कर दिया और लटकाए रखा था ....

2016 में मोदी सरकार ने इसके प्रत्यर्पण पर काम शुरू किया और मोदी ने डेनमार्क के PM से खुद बात कियाl तो खबर ये है कि Kim Davy के भारत प्रत्यर्पण होने के रस्ते बन चुके हैै l सब कुछ सही रहा तो 2016 में शुरू हुई कोशिश कामयाब हो गयी है... और बहुत सारे सफेदपोश और राजनैतिक खद्दरधारी नंगे होने वाले हैं, ये extradition तस्वीर बदल देगा ...
भारत में असहिष्णुता और बढ़ने वाली है... ख़बरें गढ़ के लकड़बग्घों, शेर और चीतों के सुचिता के उफान का झाग उड़ाने का काम भी होने वाला है... आने वाले प्रोपगैंडा में फंसने से पहले ध्यान रखें ... क्रमशः.... http://khashkhabhar.blogspot.in/2017/06/2.html
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पुरुलिया हथियार काण्ड – 2

पुरुलिया हथियार काण्ड के तार ::: ये भारत और विश्व के लिए बड़ा रहस्य है... एक जहाज भारत के पुरुलिया में 4 टन हथियार गिरा देता है जिसमे होते हैं AK47 रायफल (2500), 15 लाख राउंड गोलियां और 400 राकेट लॉन्चर... ये हथियार पकड़ लिए जाते हैं लोकल पुलिस के द्वारा... इसके कुछ तथ्य और प्रश्न... 

1. ये जहाज़ कहीं से पहले कराची आता है। ये जहाज पाकिस्तान की ISI की कंपनी से कब्जे में maintenance के बहाने चार दिन रुकता है। फिर वो जहाज़ कराची से बनारस आके रुकता है। बनारस में कई घंटे वो ईंधन डलवाने के लिए रुकता है। वहाँ पर काफी सारा सामान उतारा जाता है... वो सब सामान कहाँ और किसके हवाले किया गया?

2. हथियार के सौदागर Peter Bleach का कहना हैं कि जब उसके साथ Kim Davy ने हथियारों का सौदा किया तो उसको हथियारों के डिलीवरी के तरीके पे संदेह हुवा और उसने ये बाद ब्रिटिश पुलिस को बताया। जिसने ये बात ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI5 को बताया। MI5 के ये जानकारी भारत सरकार को तीन बार बताया - 15 November, 17 November and 15 December, 1995 पहले दो नोटिस पे कोई कार्यवाही नहीं हुई। 15 दिसंबर को भारत सरकार ने ये जानकारी पश्चिमी बंगाल सरकार को चिट्ठी लिखा और रजिस्टर्ड पोस्ट से भेज दिया (Fax, Telegram, phone पर कुछ नहीं बताया) जब पश्चिम बंगाल सर्कार एक हफ्ते बाद चिट्ठी मिली तब तक हथियार गिराए जा चुके थे। 

3. Kim Davy का साफ़ कहना है कि वो पकडे जाने के बाद मुंबई से भगा दिया गया... वो पुणे-दिल्ली-दरभंगा होते हुए हुए नेपाल गया। वहां से डेनमार्क भाग गया। ये सब पप्पू यादव ने कराया, इस दौरान वो भारत सरकार के लाल बत्ती वाली गाड़ियों और SPG सुरक्षा में रखा गया था। 

4. किसने जहाज को पकडे जाने से बचाने के लिए जगह जगह भारतीय वायुसेना के राडार बंद करा दिए थे। 

5. Peter Bleach ने बताया कि उस समय केस इन्वेस्टीगेशन कर रही CBI ने केस को कमजोर कर दिया। उसने 30 पन्नो का बयान लिखित में CBI को दिया था जिसको CBI ने अदालत में पेश ही नहीं किया। 

6. Kim Davy उधर डेनमार्क में बैठ कर प्रेस वार्ता करता था, इंटरव्यू देता था, फिल्म और वीडियो रिलीज़ कर रहा था, इधर CBI कोर्ट को गायब बता रही थी। 
7. CBI के अधिकारी कई बार इंग्लैंड गए और MI5 और MI6 के लोगों के साथ मिलकर केस फाइल कमजोर करते रहे। 

8. कहा गया कि सारा हथियार वामपन्थियों के खिलाफ लड़ाई के लिए आये थे लेकिन वामपंथी पार्टियों ने कभी इसपर कोई क्रांति नहीं किया। 2.5 वर्ष केंद्र की सत्ता में भागिदार रहे (गौड़ा और गुजराल) फिर उसके बाद 5 साल कांग्रेस की अगुवाई वाले UPA की सरकार को समर्थन दिया लेकिन केस के मामले में कोई कदम नहीं उठाया। 2011 में एक TV के बहस में जयंती नटराजन और वृंदा करात ने वाजपेयी सरकार और भाजपा पर सवाल उठाए जबकि काण्ड के समय दोनों जगह इन लोगों की सरकार थी… वामपंथियों और कांग्रेस का ये रिश्ता क्या कहलाता है? इस बहस में दोनों ने एक दुसरे को खूब समर्थन दिया... बहस को पुरुलिया से वाजपेयी की तरफ मोड़ने की कोशिश की जिनके शासन के समय अपराधी बच गए और Peter Bleach को राष्ट्रपति से अभयदान मिला। इनके लॉजिक को Peter Bleach ने वही भोथरा कर दिया जब उसने बताया कि सारे अपराधी न्यालालय द्वारा छोड़े गए थे और उसको भी अभयदान देने के कारण कैसे बना... फिर दोनों नेत्रियां एक साथ चिल्लाने लगीं... Peter Bleach ने कहा CBI को छोड़ के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश का एक सदस्य कमिटी बना के जांच करा लो तो 6 माह में सारा मामला खुल जाएगा। जयंती नटराजन ने साफ़ मना कर दिया और वृंदा करात ने कहा प्रपोजल आएगा तो सोचेंगे…. ये मिलीभगत क्या कहलाता है? 

9. जब ये हथियार आनदमार्गियों को मिलने थे पुरुलिया में तो बनारस में खेप किसने लिया?
10. कहीं ये हथियारों की खेप की सप्लाई आपसी मिली भगत तो नहीं थी और आनंदमार्गी के कंधे पर इसको ठेला जा रहा था?

11. Peter Bleach बार बार कहता रहा कि ब्रिटिश ख़ुफ़िया और भारत ख़ुफ़िया इस पर नोट्स एक्सचेंज करते रहे तो फिर क्या ये काम केस कमजोर करने के लिए हुवा जिससे सारे अपराधी बचा लिए जाएं। उसने कहा कि वो जहाज पर हथियार डिलीवरी कराने के हैसियत से था और उसको आश्वत किया था MI6 ने कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां जहाज़ को बनारस में पकड़ लेंगी और वो बचा लिया जाएगा। Kim Davy ने साफ़ कहा था कि डील के अनुसार उसको पकडे जाने पर तुरंत बचा लिया जाएगा।... जब जहाज को वायु सेना ने मुंबई में लैंड करने को मजबूर किया तो दिल्ली के CBI के अधिकारी वहां पहले से मौजूद थे। और वो बच कर भाग गया-भगा दिया गया। किसने वहां अधिकारियों को भेजा था? 

12. वायु सेना के राडार को बंद कराने का ताकत रखने वाला वो कौन था? 

13. इस पूरे केस में कराची और ISI कनेक्शन को पूरी तरह गायब कर दिया गया?... ISI से मदद का जाल और पाकिस्तान को पूरे फ्रेम से गायब करने का किसके इशारे पर खेला गया...

14. पूर्व CBI निदेशक जोगिन्दर सिंह ने राष्ट्रीय चैनल पर स्वीकार किया कि इस केस में राजनैतिक दबाव था रफा दफा करने का- कौन लोग थे जिनका दबाव था?
इस पूरे केस में भारत की सुरक्षा के साथ बहुत बड़ा खेल खुद अंदर के ताकतवर लोगों ने खेला... मेरे मन में जागे प्रश्न के अनुसार क्या ये पहली और आखरी खेप थी?... अन्तः मन तो कहता है कि ये वो खेप थी जो पकड़ी गयी... पता नहीं ये खेपों का खेल कितनी बार खेला जा चूका होगा .... क्रमशः....
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पुरुलिया हथियार काण्ड – 3

कुछ और कड़ियाँ... 
मुख्य अभियुक्त Kim Davy कौन था? लोग सिर्फ हथियार गिराने वाला जानते हैं। लेकिन उसका एक अनोखा पहलू है। वो मुख्य रूप से हॉन्ग कॉन्ग के सोने और नशे का तस्करी करने वाले गैंग का पार्टनर था। वो 19 वर्ष की उम्र से ही ये गैंग चला रहा था... फिर अचानक से उसका दिल बदल गया (पचा सकते हैं तो पचा लीजिये) और वो सुधर गया। उसके मन में गरीबों पिछड़ों के लिए काम करने का सत्कर्म जाग उठा। उसने एटलस उठाया और संयोग से भारत के सबसे गरीब इलाके पश्चिमी बंगाल पर नज़र पड़ी... उसने तस्करी छोड़ दिया और एक NGO को ज्वाइन कर लिया... कहते हैं कि इस NGO ने ही उसको सुधारा था (पचा नहीं तो हाजमोला लीजिये)... और वो उसको भूखे नंगों की सेवा कराने भारत ले आयी। इस NGO ने उसको पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया में काम पर लगाया - जहाँ उसने बहुत अच्छा काम किया जिससे खुश होकर NGO ने उसको पूरे बंगाल में काम दे दिया... ..... तो जनाब सुनिए वो प्यारी NGO है... GREENPEACE... बढ़िया स्टोरी कुक किया गया था एक तस्कर को भारत में रेकी कराने के लिए... बाद में NGO आराम से कह सकती है कि हमने तो सुधार दिया था बन्दा... हमको उसके बैकग्राउंड से क्या... पाँच साल भारत में रहकर उसने काम किया। एक अंतर्राष्ट्रीय तस्कर भारत में रह रहा है ये अपने ख़ुफ़िया विभाग को पता ही नहीं चला... वो इतना ताकतवर हो गया कि जहाज लेकर आराम से देश में आ जाता था और उसके लिए राडार बंद कर दिए जाते थे... हमारी सरकार और अन्य विभाग का इस सब में कोई हाथ नहीं वो मासूम हैं - निर्दोष, निष्पाप और निष्कलंक गोमुख से भरे गंगा जल जैसे... और ये जनता कितनी बड़ी मूर्ख है ये भी सबको मालूम है... 

खैर आगे बढ़ते हैं - हथियार गिराने ने बाद वो कलकत्ता आये तेल भराया व सकुशल भारत से निकल गए उसी जहाज़ से थाईलैण्ड। वहाँ दो दिन दारू पिया, मसाज वगैरह कराया और लौटने लगे उसी जहाज़ से।आराम से चेन्नई आये जहाज़ refuel कराया। उसके बाद मुम्बई की तरफ चल पड़े और बस उधर ही गलती कर दी। उन्होंने हवा में रास्ता बदल दिया जो भारतीय वायु सेना के राडार पर आ गया और वायुसेना ने जबरदस्ती मुंबई में उतार दिया। चूँकि असल काम हो चूका था और राडार बंद नहीं कराया गया था इस बार जैसा कि हथियार लाते समय कराची से उड़ने के बाद राडार बंद करा दिए गए थे तो गलती से धरा गए। 

अब आगे कुछ और हाजमे की दवाई की जरूरत पड़ सकती है आप को... वो जहाज़ वायुसेना ने उतारा उससे Kim Davy भाग गया तुरंत। वो बोलता है कि दिवार फांद के भाग गया ..वहां से पूना गया, दिल्ली फिर दरभंगा - नेपाल होते हुए डेनमार्क आ गया। मतलब वायुसेना केचंगुल से AAI के लोगों के बीच सेे हवाई अड्डे की दीवार कूद के भाग गया... अगर पच रहा है तो ठीक, वरना समझ लीजिये कि भगा दिया गया... Kim Davy का कहना है कि उसने आनंदमार्गी लोगों को वामपन्थियों से लड़ने के लिए हथियार गिराया था और केंद्र सरकार ये करना चाह रही थी। सांसद पप्पू यादव के पिताजी बड़े अनादमार्गी हैं। Jim Davy कहता है कि उसको भागने में पप्पू यादव ने ही मदद किया। उधर दुसरे आरोपी Peter Bleach का कहना है कि मुंबई में लैंड होने के चंद मिनट में ही बड़े CBI अधिकारी वहां पहुँच गए और फिर कलकत्ता भी जाके केस संभाला जबकि केस किसी और अधिकारी को देखना था क्योंकि वो इंचार्ज थे। लेकिन इसको सुपरसीड करके बड़के अधिकारी ने केस संभाला। बड़के अधिकारी उस समय NSG के भी निदेशक थे। जबकि बड़के अधिकारी का कहना है कि न वो मुंबई गए और न वो कलकत्ता गए। अन्य क्रू मेंबर भी कहते हैं कि वो उधर आये थे.... चलो पचा लेते हैं... चूँकि वो सब चोर थे तो झूठ बोल रहे हैं और बड़के अधिकारी साहब कोतवाल थे तो सच बोल रहे हैं। 

हथियार किस देश से आये? सोचिये... इस घटना मे जो हाथियार गिराए गए वो दुसरे कांड के एवज में एक सौदा था?... AK 47 जो भी भारत officially लेता था उस समय वो Czech Republic में बनी होती थी। जो हथियार पुरुलिया में गिराए गए वो Czech Republic में बनी AK 47 से ज्यादा सटीक थी और इसके कुंडे ज्यादा मजबूत थे और वजन ज्यादा था। पुरुलिया रायफल में से कुछ बंगाल पुलिस के कमाण्डो दिया गया था और इसका उपयोग वो जंगलमहल में माओवादियों के खिलाफ इस्तेमाल करती थी। एक इंटरव्यू में पुलिस के एक अफसर ने कह दिया कि ये हथियार ओरिजिनल रूसी हैं। इसी अफसर ने माओवादी नेता मलाउजुला कोटेश्वर राव उर्फ़ किशनजी को ठिकाने लगाया था... वही हथियार उसके पास भी मिले थे... मतलब ठीक वैसे ही... 

इस मामले में जितना रिसर्च करो उतना ही दिमाग चकरघिन्नी बन जाता है... डॉक्यूमेंट डाउनलोड करना, पढ़ना... उफ़... जाने देते हैं... इसपर दुनिया चुप है... अब हम भी चुप हो जाते हैं... यही ठीक रहेगा... वैसे इस पर Chandan Nandy की किताब है "The night it rained guns"... पढ़ने का मन हो पढ़ लीजिये... कुछ ख़ास नहीं पता चलेगा... दिमाग का कीमा बन जाएगा कई प्रश्न और उठ खड़े होंगे... इस पर जर्मन फिल्म मेकर Andreas Koefoed ने एक फिल्म बनाई "The Arms Drop" ये भारत में रिलीज़ नही हुई... ये भारत में बैन है... इसमें भी मेरे ख़याल से कुछ नहीं मिलेगा, खामखा में भारत सरकार ने बैन किया है कहीं से डाउनलोड करने पर भी... 

Kim Davy छँटा हुवा बदमाश है... भारत आने पर भी कुछ नहीं पता चलने वाला... लेकिन उसको मालूम सब है... वो राज अपने सीने में लेके मरेगा... और अनंत काल तक जन मानस सस्पेंस लेकर मरेगा... जय हो... मेरा भारत महान... सचमुच कांग्रेस और वामपंथी महान पार्टी है... आप ये भी सोचिये जो आर्म ड्राप पकडे नहीं जा सके हैं... सोचते रहिये या काम पर चलिए...
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क्या आप जानते हैं...

क्या आप जानते है, कि भारत में कौन सा अखबार या चैनल किस पार्टी या दल का आरती उतारता है/या भोपू है...गर नहीं जानते तो आज ही जानिये...ये देश के लिए और आपके लिए अत्यंत आवश्यक है....
जानिये अपने अखबारों और चैनलों को, वे कितने गिरे हुए हैं और किस पार्टी/दल की भक्ति में लग कर, भारत की एकता व अखंडता को चोट पहुंचा रहे हैं, अपने बच्चों को भी बताइये...क्योंकि ये बच्चे बहुत ही कोमल है, जो आज सीखेंगे, वहीं युवा होकर देश को देंगे...बच्चों पर किसी भी दल के विचार को मत थोपिये, उन्हें जो अच्छा लगे, करने दें, बस उनका मार्गदर्शन करते रहे...उन्हें वामपंथी बनना है, या दक्षिणपंथी बनना है, या विशुद्ध रुप से मानवीय मूल्यों को आत्मसात करना है...उन्हें इसकी खुली छूट दीजिये...हालांकि वामपंथी गुंडों का एक दल नहीं चाहता कि देश में समरसता रहे, इसके लिए हर प्रकार के छल -प्रपंच का वो शुरुआत कर चुका है...उसके बाद भी अब देखिये....
1. हिन्दुस्तान - ये अखबार अपने स्थापना काल से कांग्रेस प्रेम के लिए प्रसिद्ध है, ये आज भी कांग्रेस का गुण गाता है...उदाहरण 25 फरवरी का अखबार देख लीजिये... ज्यादातर अखबार स्मृति ईरानी के धुंआधार भाषण से पटा है, पर ये ज्योतिर्दित्य सिंधिया में देश ढूंढ रहा है...इसके मालिक कई बार कांग्रेस से उपकृत होकर राज्यसभा सदस्य भी बन चुके है...इसलिए कांग्रेस इसकी पहली पसंद और दूसरे में नीतीश और लालू को ये अपना सब कुछ समझता है...
2. प्रभात खबर - ये अखबार जदयू का खास अखबार है... इसे नीतीश कुमार में भगवान नजर आता है...इसका प्रधान संपादक हाल ही में जदयू का सांसद बना है...इसके अखबारों में जदयू के नेताओं व सांसदों के वैचारिक आलेख खुब छपते है, फिलहाल लालू व राहुल भक्ति में आकंठ डूबा है, भाजपा से इसकी नहीं पटती...
3. दैनिक जागरण - विशुद्ध रुप से भाजपाई अखबार है, इसके मालिक भाजपा से उपकृत होकर कभी सांसद भी बन चुके है...ये भाजपा के खिलाफ सुनने को तैयार नहीं, पूर्णतः पत्रकारिता को व्यवसाय मानकर ये चलता है...मिशन इसके लिए कुछ भी नहीं....
4. दैनिक भास्कर - ये अखबार पूर्णतः कांग्रेस और भाजपा का सम्मिश्रण है...समयानुसार कभी मिशन तो कभी व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाता है...इसके लिए अखबार ही सब कुछ है...जनता का मिजाज भांपता है, वहीं दृष्टिकोण अपनाता है...यानी जस जैसा, तस तैसा...हर जगह इसकी पकड़ है, हर वर्ग के नेताओं की यह जय जय करता है, ताकि जब कभी किसी की सत्ता आये तो उसका व्यवसायिक लाभ ये उठा सकें...
5. बीबीसी - इसका सारा समाचार भारत विरोध से शुरु होता है और भारत विरोध पर ही खत्म हो जाता है....
6. द टेलीग्राफ - कट्टर वामपंथ समर्थक...
7. द टाइम्स आफ इंडिया - कांग्रेस और वामपंथ समर्थक....
8. हिन्दुस्तान टाइम्स - कट्टर कांग्रेस समर्थक...
9. हिन्दु - कट्टर भाजपा आलोचक/वामपंथ समर्थक...
7. आनन्द बाजार पत्रिका - कट्टर वामपंथ समर्थक....
8. एनडीटीवी - कट्टर भाजपा आलोचक, इसका वश चले तो भाजपाइयों को देखते ही गोली मार दें...कट्टर वामपंथी....उसका उदाहरण देख लीजिये...24 फरवरी को स्मृति ईरानी संसद में विपक्षी दलों का जवाब दे रही थी...भाजपा के कट्टर विरोधी होने के कारण ये स्मृति ईरानी का लाइभ की जगह इंटरनेशनल एजेंडा दिखा रहा था, जबकि सारे चैनल अपने सारे कार्यक्रम रद्द कर स्मृति ईरानी का लाइभ दिखा रहे थे...देश में किसानों ने आत्महत्या की...देश में भ्रष्टाचार का कई मुद्दा छाया रहा, जिससे देश के सम्मान में बट्टा लगा...इसे शर्म नहीं आयी...पर जैसे ही एक कन्हैया की गिरफ्तारी हुई...इसने भाजपा विरोध के नाम पर, वामपंथियो के समर्थन के नाम पर अपना मुंह काला करते हुए अपना प्रसारण कुछ समय के लिए ब्लैक कर दिया...इसका एकमात्र सिद्धांत वामपंथ को भारत में स्थापित करना और दिल्ली के लाल किले पर लाल झंडा लहराता हुआ देखना है....
9. आजतक - कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समर्थक....
10. एबीपी - कट्टर कांग्रेसी और वामपंथी समर्थक...
11. आईबीएऩ 7 - भाजपा समर्थक...
12. टाइम्स नाउ - न्यूट्रल....
13. जीटीवी - विशुद्ध भाजपाई....
14. ईटीवी - इन दिनों भाजपा के समर्थन में....
15. इंडिया टीवी - भाजपा समर्थक...
जो देश में रहकर, देश के लिए पत्रकारिता नहीं करता हो...वो ज्यादा देशद्रोही है...जो एक दल के प्रति समर्पित रहता है...वो ज्यादा देशद्रोही है...पत्रकार किसी दल का नहीं होता...अखबार/चैनल किसी दल का नहीं होता...उसे तो पूर्णतः निरपेक्ष होते हुए, सत्य का आश्रय लेना चाहिए...पर यहां तो कोई भाजपाई तो कोई कांग्रेसी तो कोई वामपंथी पायजामा पहन कर दिये जा रहा है....ऐसे लोगों की हम कड़ी भर्त्सना करते हैं.....
http://vidrohi24.blogspot.in/2016/02/blog-post_26.html

हिन्दुओं का धर्मांतरण

आज घोड़े पर चढ़कर कोई तलवार आपकी गर्दन पर लगा कर हिन्दुओं का धर्मांतरण नहीं करवा रहा, लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता की आड़ में सैकड़ों प्रकार के प्रपंच आज धर्मांतरण हेतु प्रयोग किये किये जा रहे हैं, जिन्हें हिन्दुओं का अधिकाँश वर्ग समझ नहीं पा रहाl और जो समझ भी पा रहे हैं उनमें भी अधिकाँश वर्ग ऐसा है जो समझता सब कुछ है परन्तु कर कुछ नहीं प् रहाl
वर्तमान में स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अधिकाँश हिन्दुओं को टेलीविजन, रेडिओ, फिल्मो के माध्यम से उल्टी सीधी बातें, किस्से, डायलाग आदि सुना सुना कर उन्हें हिन्दू धर्म के विरुद्ध करने का प्रयास किया जाता है और वो दुनिया का सबसे Soft Target बनता है, क्यूंकि उसके पास न तो अपनी धार्मिक मान्यताओं का उपहास उड़ाने वालों के लिए कोई उत्तर है न ही तोड़…
ऐसे हिन्दू अपने धर्म, संस्कृति, सभ्यता, परम्पराओं का उपहास उड़ते हुए देखते हैं… परन्तु कर कुछ नहीं पाते, ये उपहास उड़ाने वालों को उचित Reply ही नहीं दे पाते, Counter करना तो बहुत दूर की बात है … Because… The War has been Intellectual
मेरी इस पोस्ट से कोई यह निष्कर्ष न निकाल बैठे कि मैं भक्ति उपासकों या भक्ति सम्प्रदायों की निंदक या आलोचक हो गई हूँ, ऐसा नहीं है, यह स्पष्टीकरण इसलिए आवश्यक है कि FaceBook पर कई लोग ऐसे भी होते हैं जिनका मूल स्वभाव आज भी Orkut के चिरकुट वाला ही रहता है, बिना सोचे समझे Comment करना उनका स्वभाव बन चुका है, ऐसे लोग कृपया इस Post से दूर रहें, यदि कुछ समझ में आये तो अपने सुझाव दें, अन्यथा उचित दूरी बनाए रखें आपकी अति कृपा होगीl
भक्ति काल ने सनातन धर्म को इस्लामिक आक्रमणों के कारण हो रही हानियों से बचाने हेतु एक प्रकार से संजीवनी का कार्य किया, जो कि सराहनीय था, है और रहेगाl वर्तमान शिक्षा पद्धति में धर्म, अध्यात्म आदि की शिक्षा किसी विद्यालय में तो मिलती नहीं, अपितु थोड़ी बहुत शिक्षा जो घर पर या मन्दिर में मिलती है वो भक्ति की और ही प्रेरित कर देती है, परन्तु यदि अब क्या सारा जीवन भक्ति भक्ति भक्ति … और केवल भक्ति?
ये तो कुछ ऐसा हुआ मानो… आपने 10वीं कक्षा पास कर ली है, परन्तु फिर भी हर साल 10वीं की ही पुस्तकें पढ़ रहे हो, और 10वीं की ही परीक्षा की तैयारी हो रही हो … यह कब तक चलेगा??
वैसे तो आजकल के पढ़े लिखे SICKULAR लोग धर्म को एक फालतू की चीज समझते हैं, और जो लोग धर्म को अपने जीवन में महत्व देते भी हैं वे मन्दिर जाकर आरती और कीर्तन करने को ही धर्म समझ लेने की गलती करते रहते हैं, परमात्मा को प्रेम करना कोई बुरी बात नहीं होती, पर केवल भजन कीर्तन को ही धर्म समझ लेना गीता का अपमान स्वरूप है।
वेदों में तथा गीता में मुक्ति के तीन मार्ग बतलाये गए हैं…
१. ज्ञान मार्ग … २. कर्म मार्ग … ३. उपासना मार्ग …
क्यों हमारे धार्मिक लोग केवल कीर्तन की ढोलकी बजाने को ही धर्म समझ लेते हैं, क्या उनको जाकिर नाईक जैसे लोग दिखाई नही देते, जाकिर नाईक ने अपने इस्लाम के पैशाचिक ग्रन्थ पढ़े हैं और साथ ही उसने वैदिक ग्रन्थों का भी अध्ययन किया है पर यह और बात है कि जिसकी सनातन धर्म में आस्था ही न हो वो वेदों का अध्ययन कर भी लेगा तो उनकी व्याख्या तो मैक्स मुलेर के रूप में ही करेगा… नास्तिक व्यक्ति या फिर वेदों में आस्था न रखने वाले व्यक्ति यदि वेदों का अध्ययन कर भी लेंगे तो वे अर्थ का अनर्थ ही करेंगे …
और जाकिर नाईक अकेला नहीं है, मैक्स मुलर ने भी वेदों का अध्ययन किया और सत्यानाश किया, अर्थ का अनर्थ किया, आप सब लोग ठंडे दिमाग से सोचिये, क्या जाकिर नाईक और मैक्स मुलर जैसे लोगों को उत्तर देने के लायक बना जा सकता है …. कीर्तन आदि करके या ढोलकी आदि बजा कर के …???
आखिर क्यों धार्मिक लोग शास्त्र अध्ययन नहीं करते, धार्मिक लोग ही नही करेंगे तो फिर कौन करेगा …??
यही समस्या है… और इस समस्या को जाकिर नाईक तथा फादर डोमिनिक जैसे लोग भली भांति पहचानते हैं … कि हिन्दू या तो सो रहा है…. और जो जाग रहा है वो बस ढोलकी बजा रहा है, या कीर्तन आदि कर रहा है ….
उनके ग्रन्थों का सत्यानाश करने का अच्छा अवसर है?
फिर तैरा कर दिखाओ पानी में लकड़ी का क्रास … और सूरत के प्लेग के रोगियों को पिलाओ दवाई वाला पानी .. Holy Water कह कर… और करो धर्मांतरण … क्योंकि उनके कुतर्कों का उत्तर देने हेतु तो कोई आपको प्रशिक्षित करने वाला है नहीं … न ही आपको कोई सिखाने वाला है कि उचित मार्ग क्या है …. ??
भक्ति काल एक प्रकार का आपातकाल था जो कि अब गुजर चुका है, अब पुन: वापिस अपने ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग की और लौटने की है … परन्तु पूरे विश्व को केवल भक्ति भक्ति की और ही प्रेरित करते रहना क्या यह मुर्खता की पराकाष्ठा जैसी प्रतीत नही होती l
एक वो समय था जब आक्रमणकारी घोड़ पर बैठ कर आते थे और सनातन धर्म को भांति भांति प्रकार से हानियाँ पहुंचाने के प्रयास करते रहते थे, उस समय ज्ञान, पराक्रम, भक्ति, सहनशीलता, कूटनीति के तहत जितना जितना जिसका सामर्थ्य हुआ …उसने वो बचा लियाl
आज के समय में युद्ध बोद्धिक हो चुका है, अवैदिक मत और वेद विरोधी मत दोनों वैदिक धर्म की ईंट से ईंट बजाने हेतु आये दिन कोई न कोई नये प्रकार का प्रपंच चलाये रहते हैं, जिनमे रूपये के लालच में बिके हुए अहिंदुओं का भी उल्लेख आवश्यक है, जैसे सतलोक आश्रम का कबीर पंथी गुरु रामलाल जो पिछले दिनों जाकिर नाईक से पैसा खाकर हिन्दू विश्वास को चोट पहुंचाने के लक्ष्य में असफल हो हुआ, जिसमे कि एक बहुत बड़ा हाथ है पंडित महेंद्र पाल आर्य जी काl
आज यदि कुल मिलाकर देखा जाए तो पंडित महेंद्र पाल आर्य जैसे लोग ही बहुत कम मिलेंगे आपको जो सनातन धर्म के शत्रुओं को उनके कुतर्कों का वैदिक धर्म के वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर उन्हें हरा सकें l
क्या सारा जीवन कीर्तन करने वाला प्राणी कभी जाकिर नाईक के कुचक्रों का उत्तर दे सकता है ?
वर्तमान में जाकिर नाईक जैसे लोगों के पास अपना TV Channel भी है, और अरब देशों से जो वित्तीय सहायता प्राप्त होती है वो भी किसी से छुपी हुई नही है l
अब जाकिर नाईक के रिसर्च सेंटर में हजारों मुस्लमानों की भर्ती की जा रही है, जो कि जाकिर नाईक के कुचक्रों को लोगों के बीच फैलाने का कार्य सड़क पर उतर कर करने वाले हैं, मन्दिर में कीर्तन, हवन आदि करने वालों को वे दिग भ्रमित करने उतरने वाले हैं l
ये सब होगा आने वाले कानून “अंध श्रद्धा निर्मूलन कानून” के अंतर्गत …
अब अखिल भारत हिन्दू युवक सभा द्वारा ऐसे “वैदिक ज्ञानोदय” कार्यक्रम के माध्यम से युवकों को चुन चुन कर तैयार किया जायेगा…
जिसमे वैदिक ज्ञान, वैदिक मत, वैदिक सिद्धांत, वैदिक साहित्यों, दर्शनों, समस्त श्रुतियों स्मृतियों आदि का ज्ञान दिया जायेगा, उसके उपरान्त समस्त अवैदिक और वेद विरोधी पुस्तकों का भी तुलनात्मक अध्ययन करवाया जायेगा l
अंत में मुख्य रूप से इसमें सभी युवकों को गैर हिन्दुओं के शुद्धि करण की विधि भी सिखाई जाएगी, जिसके माध्यम से किसी भी पैशाचिक सम्प्रदाय के अंतर्गत पैशाचिक जीवन जीने वाले किसी भी अहिंदू को आप कभी भी कहीं भी शुद्धिकरण करके एक विशुद्ध मनुष्य जीवन जीने का अवसर प्रदान कर सकते हैं l
अज्ञानता के चलते हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल पाते ना ही आकलन कर पाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत …
सही अर्थों में कहा जाए तो जिस व्यक्ति को धर्म सत्य नीति का वास्तविक ज्ञान ही न हो, वो अधर्म असत्य अनीति का विरोध किस प्रकार कर पायेगा ?
इस पवित्र कार्य में सहयोगी बनने वाले समस्त सनातनी भाइयों का हार्दिक स्वागत है, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक कार्यक्रमों में सक्रीय रूप से भाग लेकर जाकिर नाईक जैसे लोगों के कुचक्रों से सनातन धर्मियों को बचाने हेतु आगे आयें l
हिन्दू महासभा प्रचंड हो, भारत देश अखंड हो
ॐ सर्वोपरि सर्वगुण संपन्न सनातन धर्मं
|| सनातनधर्मः महत्मो विश्व्धर्मः ||
”विश्व महाशक्ति बनना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, और हम इस पद को लेकर रहेंगे।”


क्या है ब्रह्माकुमारी संस्था ?

चलो बह्माकुमारी का भी शिल तोडता हूँ... पर्दाफ़ाश....

'ओम् शान्ति', 'ब्रह्माकुमारी'... हम लोगों ने छोटे-बड़े शहरों में आते-जाते एक साइन बोर्ड लिखा हुआ देखा होगा 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' तथा मकान के ऊपर एक लाल-पीले रंग का झंडा लगा हुआ भी देखा होगा, जिसमें अंडाकार प्रकाश निकलता हुआ चित्र अंकित होता है। इस केन्द्र में व आसपास ईसाई ननों की तरह सफेद साड़ियों में नवयुवतियाँ दिखती हैं। वे सीने पर 'ओम् शान्ति' लिखा अंडाकार चित्र युक्त बिल्ला लगाये हुए मंडराती मिलेंगी। आप विश्वविद्यालय नाम से यह नहीं समझना कि वहाँ कोई छात्र-छात्राओं का विश्वविद्यालय अथवा शिक्षा केन्द्र है, अपितु यह सनातन धर्म के विरुद्ध सुसंगठित ढ़ंग से विश्वस्तर पर चलाया जाने वाला अड्डा है।

स्थापना: इस संस्था का संस्थापक लेखराज खूबचंद कृपलानी था। इसने अपने जन्म-स्थान सिन्ध (पाकिस्तान) में दुष्चरित्रता व अनैतिकता का घोर ताण्डव किया, जिससे जनता में इसके प्रति काफी आक्रोश फैला। तब यह सिन्ध छोड़कर सन 1938 में कराची भाग गया। इसने वहाँ भी अपना कुकृत्य चालू रखा, जिससे जनता का आक्रोश आसमान पर चढ़ गया। इस दुश्चरित्रता व धूर्तता का बादशाह लेखराज अप्रैल सन् 1950 में कराची से 150 सुंदर नवयुवतियों को साथ लाकर माउण्ट आबू (राजस्थान) की पहाड़ी पर रहने लगा और यहीं अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा।

सिन्ध में लेखराज की चलने वाली ओम मंडली की जगह माउण्ट आबू में 'प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय' नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है। 

संचालन : लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय लंदन (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का एन.जी.ओ. बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के न्युयार्क शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इस संस्था को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है। 

कार्य व उद्देश्य : ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल

प्रचार-प्रसार : इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमार' कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमारी' कहते हैं ।

ईसाईयत का नया रुप- ब्रह्माकुमारी:
आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एेंथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है। 

ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है:

''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमी पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''

सालों से देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं। ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।

ब्रह्माकुमारी द्वारा हिन्दुत्व को मिटाने का खुला षड्यंत्र :
(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजस्थान से प्रकाशित 'भारत के त्यौहार' भाग 1, भाग-2 में वर्णित)

शिवरात्रि : प्रजापिता ब्रह्मा लेखराज ने कल्प के अंत मे अवतरित होकर तमोगुण, दुःख अशान्ति को हरा था। उसी की याद में शिवरात्रि मनायी जाती है। 

होली : कलियुग के अन्त में व सतयुग के शुरुआत में परमपिता ब्रह्मा लेखराज द्वारा सुख शान्ति के दिन शुरु किये गये थे। उसी की याद में होली मनाई जाती है। लकड़ी, गोबर के कंड़े जलाने से क्या होगा? देहातों में रोज जलते हैं। बहुत से शिष्ट लोगों के मन में इस त्यौहार के प्रति घृणा पैदा हो गई है। इनके मतानुसार शास्त्रों में झूठी, मनगढन्त कल्पनाएं हैं।

रक्षाबंधन : ब्रह्माकुमारी बहनें लेखराज के ज्ञान द्वारा ब्राह्मण पद पर आसीन होकर भाई को राखी बांधती है तथा बहन पवित्रत्रा के संकल्प की रक्षा करती है। रक्षाबंधन वास्तव में नारी के द्वारा नर की रक्षा का प्रतीक है, न कि नर द्वारा नारी की रक्षा का। इनके मतानुसार हिन्दू शास्त्रों में रक्षा बंधन विषयक उलटी, गड़बड़ कल्पनायें जड़कर रखी है। 

दीपावली : कलयुग के अन्त में परमपिता ब्रह्मा लेखराज ने पूर्व की भांति दुबारा इस धरा पर आकर सर्व आत्माओं की ज्योत जगाने के लिए अवतरित हुए हैं। लोग अपनी ज्योत जलाने की याद में दीपावली मनाते हैं। इनके मतानुसार शास्त्रकारों ने झूठी कल्पनाएं फैला रखी है। इसी कारण लोग मिट्टी का दीप जला कर खेल खेलते हैं।

नवरात्रि : लेखराज ने ब्रह्माकुमारियों को ज्ञान देकर दिव्य गुण रुपी शक्ति से सुसज्जित किया है। अन्तर्मुखता, सहनशीलता, आदि दिव्य शक्तियाँ ही इनकी अष्ट भुजायें हैं। इन्हीं शक्तियों के कारण ये आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति बन गई हैं। ब्रह्माकुमारियां दुर्गा आदि शक्ति बनकर भारत के नर-नारियों को जगा रही हैं। इसी के याद में नवरात्रि मनाई जाती है। लोगों को ज्ञान देने की याद्गार में कलश स्थापना, जगाये जाने की स्मृति में जागरण करते है। लोग इन कन्याओं के महान कर्तव्य के कारण कन्या-पूजन करते हैं।

दशहरा : द्वापर युग (1250 वर्ष पूर्व) में आत्मा-रुपी सीता कंचन-मृग के आकर्षण में पड़कर माया रुपी रावण के चंगुल में फंसती है। उस समय से लेकर अब तक सारी सृष्टि शोक-वाटिका बन जाती है। ऐसे समय में परमात्मा लेखराज आकर ज्ञान के शस्त्र से माया रुपी रावण पर विजय दिलाते हैं तब सतयुगी राज्य की पुनर्स्थापना होती है। 5000 साल पहले भी परमात्मा लेखराज ने ऐसा किया था, अभी भी कर रहे हैं। मनुष्य रुपी राम ने भी इसी दिन दस विकार रुपी रावण पर विजय पायी थी तभी से दशहरा मनाते है। शास्त्रों में वर्णन काल्पनिक है। राम, रावण, बंदरो की सेना इत्यादि सब गप-शप व उपन्यास है।

ब्रह्माकुमारी संस्था की धूर्तता व पाखण्ड:
माउण्ट आबू में लेखराज अपने व्यभिचार व पापाचार को धर्म का जामा पहनाता रहा। अन्ततोगत्वा 18 जनवरी 1969 को हार्ट-अटैक से काल के गाल मेें समा गया। लेखराज ने सन् 1951 से सन् 1969 तक मृत्यु पर्यन्त जो कुछ मूर्खतापूर्ण बकवास सुनाया उसे 'ज्ञान मुरली' कहा जाता है। ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रतिदिन इन्हीं पाँच वर्ष की बकवास को पढ़ाया व सुनाया जाता है तथा हर पाँच वर्ष बाद दोहराया जाता है। लेखराज के जीवन काल से ही मुरलियों में फेरबदल होता आ रहा है। उसे टैप रिकार्ड में टैप करके भी रखा जाता था। लेखराज की मृत्यु के बाद सारी रिकार्ड की गयी कैसटों को नेस्तनाबूद कर दिया गया। काट-छाँट की हुई 2 या 4 कैसटें दिखावे के लिये रखी हैं। अब लेखराज की मृत्यु के बाद एक और झूठ व अंधविश्वास का पुलिंदा जोड़ा गया है कि गुलजार दीदी के शरीर में लेखराज व शिव बाबा आते हैं। 

ब्रह्माकुमारियों द्वारा लेखराज को ब्रह्मा बताकर उसका ध्यान करने को कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महादेव के संयुक्त चित्रों में ब्रह्मा के स्थान पर लेखराज का चित्र रखते हैं, लेखराज की पत्नी जसोदा को आदि देवी सरस्वती बताकर इनका चित्र भी लेखराज के साथ रखते हैं। ईश्वर के विषय में इस मत की पुस्तकों में ऊटपटांग, अप्रमाणित, सनातन धर्म-विरोधी वर्णन मिलता है ।

ब्रह्माकुमारी के संस्थापक लेखराज के काले कारनामे:
हैदराबाद (सिन्ध) पाकिस्तान 15 दिसम्बर 1876 में जन्मा लेखराज अपनी अधेड़ उम्र तक कलकत्ते में हीरे का व्यापार करता रहा। उसने दस लाख रुपये कमाये जो उस जमाने में काफी अधिक राशि थी। हीरा का धन्धा बन्द कर एक बंगाली बाबा को दस हजार रुपये देकर सम्मोहन, कालाजादू आदि तंत्र-मंत्र सीखा। सन् 1932 से इसने खुद के समाज में मनगढ़न्त भाषण शुरु किया तथा 'ओम मंडली' नामक संगठन बनाया। सन् 1938 तक इसने 300 सहयोगी बना लिये। इसके रिश्तेदार जमात बढ़ाने के लिये प्रचारित करने लगे कि दादा लेखराज के शरीर में शिवजी प्रवेश करके ज्ञान सुनाते हैं।


मायावी लेखराज की पापलीला :
लेखराज हैदराबाद में जहां रहता था उसे उसने आश्रम नाम दे दिया, जिससे वहाँ महिलाआें का आना-जाना शुरु हो गया। लेखराज ने महिलाओं को उनके पति और परिवारों को छोड़ने के लिये उत्साहित किया। महिलाएं अपने पति व घर-परिवार को छोड़ने लगीं तब सिन्धी समाज भड़क गया। ब्रह्माकुमारियों को उनके परिवार वालों ने अच्छी तरह पीटा। राजनैतिक पार्टियों व आर्य समाज जैसे संगठनों के हस्तक्षेप से लेखराज के जादू-टोना और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। सम्मोहन की कला के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करके एक विकृत पंथ बनाने की बात पायी गयी।

18 जनवरी सन् 1939 मेें 12 और 13 साल की दो लड़कियों की माताओं ने कराची के ऍडिशनल मजिस्ट्रेट के न्यायालय में ओम मंडली के खिलाफ एक याचिका दायर की। महिलाओं की शिकायत थी कि उनकी बेटियों को गलत तरीके से उनकी मरजी के बिना ओम मंडली ने कराची में अपने पास रखा है। अदालत ने लड़कियों को उनकी माताओं के साथ भेजने का आदेश दिया।

लेखराज का पाखण्ड व उस पर कानूनी कार्यवाही :
सिन्ध में ओम मंडली ने भयंकर पाखण्ड किया। लोगों की जवान बहन, बेटियों व पत्नियों को लेखराज अपनी गोद में बिठाने लगा। लेखराज का जवान-जवान लड़कियों के साथ सोना, बैठना, साथ में नहाना आदि देखकर जनता में काफी आक्रोश व ओम मंडली के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुआ। उस समय सिन्ध में लेखराज की अनैतिक कारनामों के कारण धार्मिक जनता में बड़ी खलबली मच गई थी। इसके विरुद्ध भाई बंध मंडली के प्रमुख मुखी मेघाराम, साधु श्री टी. एल. वास्वानी आदि लोक-सेवकों ने धरना दिया। ओम मंडली में गयी सैकड़ों लड़कियों को छुड़ाकर उनके घरवालों तक पहुँचाया गया। सिन्ध प्रान्त की सरकार के दो हिन्दू मंत्रियों ने विरोध-प्रदर्शनात्मक इस्तीफा भी दे दिया था।


सन् 1939 में ओम मंडली के विरुद्ध धरना:
मई 1939 में सिन्ध सरकार ने सन् 1908 के आपराधिक
कानून संशोधन अधिनियम का इस्तेमाल कर ओम मंडली को गैर कानूनी संगठन घोषित किया। ओम मंडली को बंद करने व अपने परिसर को खाली करने का आदेश पारित किया गया।

लेखराज विरोध और कानून से बचने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ कराची भाग गया। वहाँ ओम निवास नाम से उसने एक हाईटेक अड्डा (भवन) बनाया। कराची में कुछ समय बाद ओम मंडली में लेखराज व गुरु बंगाली के दो विभाग हुए। ओम राधे सहित तमाम महिलाओं के साथ लेखराज हैदराबाद से माउण्ट आबू भाग आया और यहाँ अपना पाखण्ड शुरु किया। लेखराज की जवान लड़की 'पुट्टू' एक गैरबिरादरी वाले अध्यापक 'बोधराज' को लेकर भाग गयी और उससे शादी भी कर लिया।

लेखराज के बाद दूसरा शिव बना वीरेन्द्र देव दीक्षित:
वीरेन्द्र देव दीक्षित ब्रह्माकुमारी संस्था माउण्ट आबू से लेखराज का ज्ञान सीखा और अहमदाबाद में रहकर इस पाखण्ड का प्रचार-प्रसार करने लगा। यहाँ बहुत समय बाद वीरेन्द्र खुद को शंकर सिद्ध करने लगा। इसके लिये वह खुद की मुरली (जिसे वह नगाड़ा कहता था) सुनाने लगा। इसके तमाम अधार्मिक कुकृत्यों के लिये अहमदाबाद की जनता ने इसे खूब पीटा। अहमदाबाद से भाग कर वह पुष्पा माता के पास दिल्ली चला गया। इनके घर एक गरीब चपरासी की 9 साल की लड़की कमला दीक्षित रहती थी। वीरेन्द्र कमला के साथ बलात्कार करता रहा और उसे रोज कहता कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। पुष्पा माता का घर छोड़ दिल्ली में ही प्रेमकान्ता के घर चला गया। यहाँ प्रेमकान्ता का भी बलात्कार करता रहा और इसे भी कहा कि मैं तुम्हें जगदम्बा बना रहा हूँ। वीरेन्द्र लोगों को कहता था कि मैं कामीकांता (कामी देवता) हूँ और मेरे पास 8 पटरानियाँ हैं। सन् 1973 से सन् 1976 तक तथाकथित शिव बनकर इन लड़कियों को पटरानी बनाकर सहवास करता रहा।

सन् 1976 में वीरेन्द्र ने एडवांस पार्टी नामक संगठन खड़ा किया तथा 'आध्यात्मिक ईश्वरीय विश्वविघालय' चालू किया। सन् 1976 में उत्तर प्रदेश के कम्पिल गाँव (जिला फर्रुखाबाद) में एक आश्रम बनाया। वीरेन्द्र लोगों को कहने लगा कि लेखराज मेरे शरीर में आ गये हैं और मैं कृष्ण की आत्मा हूँ, इसलिए मुझे 16108 गोपियों की जरुरत है। आश्रम में आती जवान औरतों के साथ बलात्कार करना चालू किया। 

लेखराज की तरह वीरेन्द्र ने भी घोर अनैतिकता व पाखण्ड फैलाया, जिसके लिये फर्रुखाबाद की युवा शक्ति, मिसाइल फोर्स, रेड आर्मी आदि की महिला संगठनों ने इन कुकृत्यों के खिलाफ आन्दोलन किया। सन् 1998 में बलात्कार के केस में वीरेन्द्र व उसके साथियों को 6 महीने तक जेल में रहना पड़ा। इसी दौरान आयकर वालों ने इसके आश्रम में छापा मारकर 5 करोड़ रुपये जब्त किये। 

ब्रह्माकुमारी के पाखण्डी मतों का खण्डन :
(1) ब्रह्माकुमारी मत- मैं इस कलियुगी सृष्टि रुपी वेश्यालय से निकालकर सतयुगी, पावन सृष्टि रुप शिवालय में ले जाने के लिये आया हूँ । (सा.पा.पेज 170)

खण्डन- लेखराज अगर इस सृष्टि को नरक व वेश्यालय मानता है तो इस वेश्यालय में रहने वाली सभी ब्रह्माकुमारियां भी साक्षात् वेश्यायें होनी चाहिए। क्या यह सत्य है? 

(2) ब्रह्माकुमारी मत- रामायण तो एक नॉवेल (उपन्यास) है, जिसमें 101 प्रतिशत मनोमय गप-शप डाल दी गई है। मुरली सं. 65 में लेखराज कहता है कि राम का इतिहास केवल काल्पनिक है। (घोर कलह युग विनाश, पेज सं.15)
खण्डन- भूगर्भशास्त्रियों को अयोध्या, श्रीलंका आदि की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से तथा नासा का अन्वेषण समुद्र में श्रीरामसेतु का होना आदि रामायण को प्रमाणित करता है। पूरा हिन्दू इतिहास रामायण के प्रमाण से भरा हुआ है। इसे उपन्यास व गप-शप कहना और सनातन-धर्म पर अनर्गल बातें कहना ही वास्तव में गप्पाष्टक है, कमीनापन है।

(3) ब्रह्माकुमारी मत- जप, तप, तीर्थ, दान व शास्त्र अध्ययन इत्यादि से भक्ति मार्ग के कर्मकाण्ड और क्रियायों से किसी की सद्गति नहीं हो सकती। (सतयुग में स्वर्ग कैसे बने? पे. सं. 29)
खण्डन- यह बातें तथ्यों से परे, नासमझी से पूर्ण हैं। जप से संस्कार शुद्ध होते हैं। तप से मन के दोष मिटते हैं)। जहाँ संत रहते हैं उन तीर्थों में जाने से, उनके सत्संग से विचारों में पवित्रता व ज्ञान मिलता है। दान व परोपकार से पुण्य बढ़ता है। शुभ कर्म का शुभ फल मिलता है। शास्त्र अध्ययन से ज्ञान बढ़ता है, सन्मार्ग दर्शन मिलता है, विवेक, बुद्धि जागृत होती है। कर्मकाण्ड से मानव की प्रवृत्ति धर्म व परोपकार में लगी रहती है और इन सब बातों से जीवों का तथा स्वयं मानव का कल्याण होता है। ईन शुभ कर्मों की निंदा करना लेखराज एवं उसके सर्मथकों की मूर्खता प्रकट करता है। जो वेदों और शास्त्रों का विरोध करता है वह मनुष्य रुप में साक्षात असुर है।

(4) ब्रह्माकुमारी मत- श्रीकृष्ण ही श्री नारायण थे और वे द्वापरयुग में नहीं हुए, बल्कि पावन सृष्टि अर्थात् सतयुग में हुए थे। श्रीकृष्ण श्रीराम से पहले हुए थे। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ.सं.140,143)

खण्डन- भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता के अध्याय 10 के 31 वें श्लोक में कहा 'पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्' अर्थात् मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने श्रीराम का उदाहरण देकर श्रीराम को अपने से पूर्व होना घोषित किया है, दृष्टान्त सदैव अपने से पूर्व हुई अथवा वर्तमान बात का ही दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि इस मत का संस्थापक लेखराज पूरा गप्पी, शेखचिल्ली था जिसने पूरी श्रीमदभगवद्गीता भी नहीं पढ़ी थी।

(5) ब्रह्माकुमारी मत- गीता ज्ञान परमपिता परमात्मा (लेखराज के मुख से) शिव ने दिया था। (सा.पा.पेज सं.144)
खण्डन- गीता को लेखराज द्वारा उत्पन्न बताना यह किसी तर्क व प्रमाण पर सिद्ध नहीं होता। इतिहास साक्षी है कि 5151 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था।

(6) ब्रह्माकुमारी मतः आत्मा रूपी ऐक्टर तो वही हैं, कोई नई आत्मायें तो बनती नहीं हैं, तो हर एक आत्मा ने जो इस कल्प में अपना पार्ट बजाया है अगले कल्प में भी वह वैसे ही बजायेगी, क्योंकि सभी आत्माओं का अपना जन्म-जन्मान्तर का पार्ट स्वयं आत्मा में ही भरा हुआ है । जैसे टेप रिकार्डर में अथवा ग्रामोफोन रिकार्डर में कोई नाटक या गीत भरा होता है, वैसे ही इस छोटी-सी ज्योति-बिन्दु रुप आत्मा में अपने जन्म-जन्मान्तर का पार्ट भरा हुआ है। यह कैसी रहस्य-युक्त बात है। छोटी-सी आत्मा में मिनट-मिनट का अनेक जन्मों का पार्ट भरा होना, यही तो कुदरत है। यह पार्ट हर 5000 वर्ष (एक कल्प) के बाद पुनरावृत्त होता है, क्योंकि हरेक युग की आयु बराबर है अर्थात् 1250 वर्ष है। (सा.पा., पृ.सं. 86)
खण्डन- एक कल्प में एक हजार चतुर्युग होते हैं, इन एक हजार चतुर्युगों में चौदह मन्वन्तर होते हैं। एक मन्वन्तर में 71 चतुर्युग होते हैं, प्रत्येक चतुर्युगी में चार युग (कलियुग 4,32,000 वर्ष, द्वापर 8,64,000 वर्ष, त्रेता 12,96,000 वर्ष एवं सतयुग 17,28,000 वर्ष के) होते हैं। 
हर पाँच हजार साल में कर्मो की हूबहू पुनरावृत्ति होती है, इसको सिद्ध करने के लिए ब्रह्माकुमारी के पास कोई तर्क या कोई भी शास्त्रीय प्रमाण नहीं है, सिर्फ और सिर्फ इनके पास लेखराज की गप्पाष्टक है जिसे मूर्ख व कुन्द बुद्धि वाले लोग ही सत्य मानते हैं। मानों यदि व्यक्ति की ज्यों की त्यों पुनरावृत्ति हो तो वह कर्म-बंधन व जन्म-मरण से कैसे मुक्त होगा?

(7) ब्रह्माकुमारी मत- परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है, वह सर्वव्यापक नहीं है।...भला बताइये कि अगर परमात्मा सर्वव्यापक है तो शरीर में से आत्मा निकल जाने पर परमात्मा तो रहता ही है तब उस शरीर में चेतना क्यों नहीं प्रतीत होती? मोहताज व्यक्ति, गधे, कुत्ते आदि में परमात्मा को व्यापक मानना तो परमात्मा की निन्दा करने के तुल्य है। (साप्ताहिक पाठ्यक्रम, पृ. सं. 44, 55, 68)
खण्डन- ईश्वर सर्वव्यापक है क्योंकि जोे एक देश में रहता है वह सर्वान्तर्यामी, सर्वर्ज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का (होना) असम्भव है।

प्राण-अपान की जो कला है जिसके आश्रय में शरीर होता है। मरते समय शरीर के सब स्थानों को प्राण त्याग जाते हैं और मूर्छा से जड़ता आ जाती है। महाभूत, कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण, अविद्या, काम, कर्म के संघातरुप पुर्यष्टक शरीर को त्यागकर निर्वाण हो जाता है। शरीर अखंडित पड़ा रहता है, जिसमें सामान्य रूप से चेतन परमात्मा स्थित रहता है। कुन्द बुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए कि एक बल्ब बुझा देने से पूरा पॉवर हाऊस बंद नहीं हो जाता।

लेखराज व उसके सर्मथकों ने सनातन धर्म की सनातन सत्यता पर आक्षेप करने के पूर्व विधिवत अध्ययन, श्रवण, मनन व निदिध्यासन कर लिया होता तो ऐसी धूर्तता व पाखण्ड भरी बातेें नहीं करते ।

वैदिक संस्कृति विश्व मानव संस्कृति:
विश्व की प्राचीनतम आर्य संस्कृति के अवशेष किसी न किसी रूप में मिले हैं। वैदिक काल से विश्व के प्रत्येक कोने में वैदिक आर्यों की पहुँच हुई और समस्त प्रकार का ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता उन्होंने ही विश्व को प्रदान की थी। नवीनतम खोज के अनुसार अमेरिका में रिचमण्ड से 70 किलोमीटर दूर केप्सहिल पर जो अवशेष पुरातत्व अन्वेषकों ने खोजे हैं, वह 17 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के हैं और उस समय विश्व में केवल आर्य संस्कृति ही विकसित थी तथा अपने चरमोत्कर्ष पर थी। जर्मनी आदि के विश्वविद्यालय में चरकॉलोजी, इंडोलोजी आदि के नाम से वेदों की गुह्यतम विद्याओं पर अन्वेषण हो रहे हैं। विश्व के कोने-कोने में सनातन संस्कृति के अवशेष, प्रमाण मिले है।

ब्रह्माकुमारों के काले-कारनामे- बलात्कार व जबरन गर्भपात

छतरपुर, जिला भोपाल (म.प्र.) की एक 26 वर्षीय दलित महिला ने ब्रह्माकुमारीयों का अड्डा सिंगरौली और भोपाल में ब्रह्माकुमारों द्वारा बलात्कार करने तथा गर्भ ठहर जाने पर जबरन गर्भपात करा देने का आरोप लगाया। महिला ने बताया 17 साल की उम्र में तलाक होने के बाद 2001 में वह शांति पाने के लिए छतरपुर स्थित ब्रह्माकुमारी अड्डे में आयी जहां से उसे भोपाल भेज दिया गया। एस.पी. को लिखित शिकायती आवेदन में महिला ने कहा कि सिंगरौली और भोपाल के ब्रह्माकुमारीयों के अलग-अलग अड्डो में युवकों द्वारा बलात्कार किया गया। 
(देशबन्धु, 15 दिसम्बर 2013)


सेक्स व व्यभिचार का अड्डा बना ब्रह्माकुमारी ध्यान-योग केन्द्र

पुलिस के मुताबिक 'ब्रह्माकुमारी ध्यान योग केन्द्र' ट्राँस यमुना कॉलोनी आगरा, व्यभिचार एवं अय्याशी का अड्डा है, न कि ध्यान केंद्र। केन्द्र पर रहने वाले हरि भाई से सेविका भारती के अवैध संबंध ऐसे थे। पूरा केंद्र ही व्यभिचार का अड्डा बना हुआ था। भारती चाहती थी कि हरिभाई उससे शादी कर ले लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। इस पर भारती ने हरिभाई की पोल खोलने की धमकी दी। जब भारती को यह पता चला कि हरिभाई उसे सिर्फ मौजमस्ती का साधन समझता है तो वह काफी उत्तेजित हो उठी थी। उसने बड़ा हंगामा मचाया। इसी के बाद वकील की सलाह से उसे ठिकाने लगाने की योजना तैयार की गई। 27 दिसम्बर 2003 की रात को हरिभाई भारती के साथ जिस कमरे में हमबिस्तर होता था, उसी कमरे में भारती को बेहद क्रूर तरीके से और अत्यन्त रहस्यमय परिस्थितियों में जिंदा जलाकर मार दिया गया। उसकी लाश को उसी रात फरह (मथुरा) पुल के नीचे फेंक दिया गया।
(नवभारत टाइम्स 18 जनवरी 2004, पल-पल इडिया 14 दिसम्वर, 2013)

सर्वोच्च न्यायालय की दृष्टि में हिन्दुत्व - 
हिन्दुत्व भारतीय समाज की परम्परा, संस्कृति तथा विरासत की सामूहिक अभिव्यक्ति है। देवत्व, विश्वत्व तथा मनुष्यता का संयोग है हिन्दुत्व। हिन्दुत्व किसी के प्रति असहिष्णु का भाव नहीं रखता है, यह जीवन का एक मार्ग है।

जनता की आवाज:
वास्तव में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ना तो कोई विश्वविद्यालय है और ना ही कोई धर्म, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक झूठ, फरेब से काम करने वाला अधार्मिक एवं गैरकानूनी काम करने वाले लोगों का संगठन है। - डॉ. सुरेंद्रसिंह नेगी (अधिकारी, सीमा सुरक्षा बल)

लेखराज की करतूतों को छुपाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया गया है। वह धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता और ना ही किसी धर्म का उसने कभी पालन किया है । - लोबो और कालुमल (न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय हैदराबाद)

ब्रह्माकुमारियों को साक्षात् विषकन्या समझना चाहिए। ये हिन्दू-सभ्यता, इतिहास, शास्त्र, धर्म एवं सदाचार सभी की शत्रु हैं। इनके अड्डे दुराचार प्रचार के केन्द्र होते हैं । - डा. श्रीराम आर्य (लेखक व महान विचारक)

ब्रह्माकुमारियाँ शब्दाडम्बर में हिन्दू जनता को फँसाने के लिए गीता का नाम लेकर अनेक प्रकार के भ्रम मूलक विचार बड़ी चालाकी से फैलाने का यत्न करती हैं। - श्री रामगोपाल शालवाले (लेखक व वरिष्ट आर्य समाजी) 

वेद व उपनिषदों पर विद्वानों के विचार:
भारत वेदों का देश है। इनमें न केवल सम्पूर्ण जीवन के लिए धार्मिक विचार मौजूद हैं, बल्कि ऐसे तथ्य भी हैं जिनको विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। वेदों के सर्जकों को बिजली, रेडियम, इलेक्टॉनिक्स, हवाई जहाज, आदि सबकुछ का ज्ञान था। - एल्ला व्हीलर विलकॉक्स (अमेरिकी कवयित्री व पत्रकार)

पूरी दुनिया में उपनिषदों के ज्ञान जैसा लाभदायक और उन्नतिकारक और कोई अध्ययन नहीं है, यह मेरे जीवन का आश्वासन रहा है और यही मेरी मृत्यु पर भी आश्वासन रहेगा। यह उच्चतम विद्या की उपज है। - आर्थर सोपेनहर (जर्मनी के दार्शनिक व लेखक)

हम लोग भारतीयों के अत्यधिक ऋणी हैं जिन्होंने हमें गिनना सिखाया, जिसके बगैर कोई भी महत्वपूर्ण खोज संभव नहीं था । - अलवर्ट आईंस्टाईन (महान वैज्ञानिक) 

उपनिषदों की दार्शनिक धाराएँ न केवल भारत में, संभवतः सम्पूर्ण विश्व में अतुलनीय है। - पॉल डायसन

यूरोप के प्रथम दार्शनिक प्लेटो और पायथागोरस, दोनों ने दर्शनशास्त्र का ज्ञान भारतीय गुरुओं से प्राप्त किया। - मोनीयर विलियम्स

जब-जब मैंने वेदों के किसी भाग का पठन किया है, तब-तब मुझे अलौकिक और दिव्य प्रकाश ने आलोकित किया है। वेदों के महान उपदेशों में सांप्रदायिकता की गंध भी नहीं है । यह सर्व युगों के लिए, सर्व स्थानों के लिए और सर्व राष्टों के लिए महान ज्ञान प्राप्ति का राजमार्ग है । - हेनरी डेविड थोरो

उपनिषदों का संदेश किसी देशातीत और कालातीत स्थान से आता है । मौन से उसकी वाणी प्रकट हुई है । उसका उद्देश्य मनुष्य को अपने मूल स्वरुप में जगाना है । - बेनेडिफ्टीन फादर ली. सो.

विषघातक ब्रह्माकुमारियों से सावधान :
सुन्दर, पढ़ी-लिखीं, श्वेत वस्त्रधारिणी नवयुवतीयाँ इस मत की प्रचारिका होती हैं। इनको ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, सृष्टि-रचना, स्वर्ग, ब्रह्मलोक, मुक्ति आदि के विषय में काल्पनिक (जो शास्त्र-सम्मत नहीं है) बेतुकी सिद्धांत कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, जिसेे वे अपने अन्धभक्त चेले-चेलियों को सुना दिया करती हैं। इस मत की पुस्तकों में जो कुछ लिखा है उनका कोई आधार नहीं है। आध्यात्मिकता और भक्ति की आड़ में ये लोग सैक्स (व्यभिचार) की भावना से काम कर रहे हैं। इनके अड्डे जहां भी रहे हैं सर्वत्र जनता ने इनके चरित्रों पर आक्षेप किये हैं। अनेक नगरों में इनके दुराचारों के भण्डाफोड़ भी हो चुके हैं। 

ब्रह्माकुमारियों का नयनयोग :
लेखराज द्वारा दृष्टिदान अर्थात् नयन योग (एक दूसरे के आखों में आखें डालकर त्राटक करना) शुरु किया गया था। अब वही नयन योग ब्रह्माकुमारियाँ करती हैं। अपने यहां आने वाले युवकों से आंख लड़ाती हैं काजल लगाकर। ब्रह्माकुमारीयों का पाखण्ड तेजी से फैल रहा है। ये प्रत्येक समाज के लिए विषघातक हैं। इनके अड्डेे धूर्तता, पाखण्ड, व्यभिचार प्रचार के केन्द्र हैं। सभी को चाहिए कि इन अड्डों पर अपनी बहू-बेटियों को न जाने दें।

इस संस्था का संस्थापक:
लेखराज जिसने जीवन में सत्यता की बात नहीं कही, लोगों को धोखा दिया व झूठ बोलता रहा। उस पाखण्डी, धूर्त के मरने के बाद उसकी बातों पर विश्वास करके सम्प्रदाय चलाना बहुत बड़ा राष्टद्रोह है।