भारत में एक बहुत बड़े वामपंथी हुए थे, शायद वामपंथ के पुरोधा थे, मानवेंद्रनाथ राय। एक बार मानवेंद्रनाथ राय (M.N. RAY) साहेब, लेनिन से मिलने गए। वहां उन्होंने जो बातें की, उनके जाने के बात लेनिन को सहयोगियों ने बताया की ये बन्दा तो हम लोगों से भी बड़ा कम्युनिस्ट है। इसका कारण यह है की कोई भी भारतीय जब भारतीयता के विरुद्ध खड़ा होता है तो बोल बचन करने में यह तक भूल जाता है कि जिस धरती की कोख में खेल कर वह बड़ा हुवा है, उसके खिलाफ भी बोलकर गर्व महसूस करने लगता है। तो ये कॉमरेड साहेब वापिस भारत आ गए। भले ये बहुत बड़े वामपंथी थे, लेकिन थे सोचने वाले और चिंतन करने वाले। सत्य की खोज करते करते एक दिन जो सत्य था समझ में आ ही गया और भाई साहब का वामपंथ से मोहभंग हो गया। और उन्होंने अपने जीवन का सार दाो लाइनों में लिखा जो हर एक को पढ़ना चाहिए ताकि उन्हें पता लगे आखिर वामपंथ होता क्या है-
"जो अपनी नीम जवानी में वामपंथी नहीं बने वो मूर्ख है,
और जो प्रौढ़ावस्था तक भी वामपंथी बना रहे वो महामूर्ख है"
उनके इस व्यंग्य, जो ज़िंदगी ने उन्हें सिखाया, इससे स्पष्ट होता है, कि वामपंथ कुछ भी नहीं बल्कि एक टीन एज (थर्टीन से लेकर नाइनटीन तक की आयु का काल) का प्राकृतिक विरोधी स्वभाव है। जब उन्हें लगता है कि माँ बाप कुछ नहीं समझते, टीचर बेवकूफ है, सब पुरातन पंथी है, दुनिया में खाली हम ही होशियार है। ये संस्कार वंस्कार सब फालतू बातें हैं।
लेकिन जब बन्दा दुनियादारी में आता है, खुद के बच्चे होते है, तब उसका सारा वामपंथ हवा हो जाता है। तो विद्रोही आयु (टीन एज) तक ही वामपंथ प्राकृतिक रूप से आता है जब आदमी में अक्ल नहीं होती। वामपंथ और अक्ल का साथ रहना नामुमकिन है। समझाना मुश्किल है। उससे कभी मत उलझना। वो कभी समझ नहीं पाएगा (वस्तुतः वह समझना ही नहीं चाहेगा)।
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