जब हम इस्लाम ने थोपे हुए युद्धों की बात करते हैं, उनपर सवाल उठाते हैं, तब अक्सर मुसलमान और उनके condom वामपंथी महाभारत की बात करते हैं। क्यों पांडवों ने कौरवों से युद्ध किया, क्यों कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि युद्ध में बंधु बांधव और गुरुजनों की भी हत्या करनी पड़े तो वो अधर्म नहीं है? किसलिए युद्ध किया, केवल जमीन के लिए ही ना? इस कुतर्क से वे अपने आक्रांता साम्राज्यवाद का समर्थन करना चाहते हैं। अक्सर हिन्दू झेंप जाते हैं क्योंकि उनके पास इसका उत्तर नहीं होता। कारण यह है कि ये ग्रंथ पढ़ने को हमारे शिक्षा पद्धति ने समय नहीं दिया।
कोई बात नहीं। हो सकता है यह उत्तर आप के काम आये-
द्यूत में हुए छल कपट के बावजूद पांडवों ने उस निर्णय को स्वीकार किया और वनवास और अज्ञातवास की शर्तें भी पूरी की। इस दौरान भी दुर्योधन ने वनवास के बीच उन्हें अपमानित करने के यत्न किये तथा अज्ञातवास के चलते उनको ढूँढने का हर यत्न किया क्योंकि अगर ढूँढ पाता तो पांडवों को दुबारा वही वनवास और अज्ञातवास भुगतना पड़ता। लेकिन भाग्य ने पांडवों का साथ दिया और वे अपना अज्ञातवास पूरा करके ही प्रकट हुए। जिस दिन अर्जुन विराट के गोधन को वापस लाने में प्रकट हुआ उस दिन दुर्योधन ने केजरी स्टाइल में चीटिंग का आरोप लगाया कि वे समय से पहले प्रकट हुए हैं। सभी कौरवों ने मेन स्ट्रीम मीडिया और वामपंथियों की तरह उसके हाँ में हाँ मिलाई थी, लेकिन भीष्म पितामह ने सत्य का साथ दिया और सबूत दिये कि पांडवों ने वाकई अज्ञातवास पूरा किया था।
उसके बाद उन्होंने अपना राज्य वापस माँगा तब दुर्योधन मुकर गया और दहाड़ा कि सुई की नोंक पर रहे इतनी भी जमीन नहीं दूँगा। तब युद्ध के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। यह न्याय-अन्याय का संघर्ष था, धर्म-अधर्म का युद्ध था। इसमें जो अधर्म का साथ दे वो बांधव नहीं था ना ही किसी हिसाब से अवध्य।
युद्ध समाप्त होने के बाद, हर योद्धा का यथोचित अंतिम संस्कार किया गया। हर राजा के राज्य में संदेश भेजे गये कि युद्ध समाप्त हुआ है, राजा को वीरमरण प्राप्त हुआ है, अब रानी या राजा का जो नियुक्त उत्तराधिकारी हो वो राज करें। न कोई राज्य हड़प लिया गया न किसी रानी को लौंडी बनाकर बेचा गया या किसी पांडव के अंत: पुर में घसीटा गया। ना ही वहाँ के सभी मर्दों को कत्ल किया गया न किसी को गुलाम बनाकर बेचा गया। यह दुर्दिन केवल बाहर से आये लुटेरों के मजहब ने ही भारत को दिखाये। न किसी के परिजनों को मार कर, उसके प्रिय पति को खजाने की जानकारी के लिए उसके सामने बर्बरता से यातना देकर मारा गया और ना ही उससे ऐसी अवस्था में उसी रात 'विवाह सम्पन्न' किया गया। यहाँ कोई किनाना साफिया के किस्से नहीं हुए।
और ना ही यहाँ किसी ने कभी हम उम्र स्नेही के पुत्री में अपनी पत्नी देखी-देखी तो पुत्रवधू या पौत्रवधू ही, और वो भी स्नेही के सहमति से, उसके लिए कोई ईश्वरी आज्ञा का हवाला नहीं दिया।
जितने भी लोग खुद को संत बताकर उभरे, अगर दुश्चरित्र पाये गये तो समाज से बहिष्कृत ही हुए। उनको आलोचना से ऊपर मानकर अनुकरणीय कभी माना न गया।
इसके बनिस्बत इस्लाम का इतिहास देखें तो क्या समर्थन मिलता है हत्याओं और लूटपाट का? केवल एक circular logic जिसको खून खराबे की धमकी से सच मनवाया जाता है ?
इस्लाम का अभ्यास करें, वह भी आँखें खुली रखकर। Chronological Order में कुरआन पढ़िये, उसकी लिस्ट नेट पर उपलब्ध है, वह भी अधिकृत इस्लामी साइट्स से। साथ में सिरा और हदीस भी पढ़ें, आप को समझ आयेंगी किस मनोभूमिका का वे अनुसरण करते हैं। सवाल पूछिये, जब तक सवाल पूछने को हम स्वतंत्र हैं। और यही स्वतन्त्रता हमें हमारी आनेवाली पीढ़ियों के लिए चाहिए तो आज हमें निडर हो कर सवाल पूछने ही होंगे। Islam is submission, and in a posture of submission, it is not possible to ask a question! सर झुकाकर सवाल नहीं पूछा जा सकता !
भारत का चरित्र सत्य जानने का रहा है और सत्य तभी जाना जा सकता है जब सवाल पूछे जायें… और सवाल पूछने के लिए सर उठाकर, आँख से आँख भिड़ाई जाती है, तभी सामनेवाला सत्य की धार से डगमगाता है।
"सत्यमेव जयते" हमारा ब्रीद है, उससे डिगे नहीं। यही हमारे लिए धरती बची है और इसका रक्षण करना केवल सैनिकों का ही कर्तव्य नहीं होता, हमारा भी है क्योंकि हर युद्ध केवल शस्त्रों से लड़ा नहीं जाता।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें