मुझे हंसी आती है कि कोई कैसे ऐसी हिंसा का समर्थन करते हुए ‘दलित जाग गए, अब नया इतिहास लिखेंगे, सवर्णों को उनकी औकात याद दिलाएंगे’ जैसी बातें कह सकता है। मेरा स्पष्ट मत है कि भारत में जाति व्यवस्था का जो वर्तमान स्वरूप प्रचलित है, वह खत्म होना चाहिए। और उस जातीय स्वरूप को खत्म करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि जाति आधारित आरक्षण को समाप्त करके व्यक्ति को उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण दिया जाए।
समस्या यह है कि राजनीति की कुटिल चालों ने पिछड़े और बिछड़े लोगों को हमसे और ज्यादा दूर कर दिया है। और ये विभाजनकारी शक्तियां लगातार अपने काम में लगी हैं। सहारनपुर का मामला देखिए। भीम आर्मी नामक संगठन जो रजिस्टर्ड तक नहीं है, उससे जुड़े लोग सोशल मीडिया का प्रयोग करके लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। वे श्रीराम को गंदी-गंदी गालियां देते हैं और रावण को अपना आदर्श मानने में गर्व महसूस करते हैं। अब खुद सोचिए कि क्या कोई सनातनी अपने आराध्य को गालियां देने वालों को अपनाने की, अपने करीब लाने की कोशिश भी करेगा। पुलिस के मुताबिक, भीम आर्मी की कार्यशैली नक्सलियों जैसी है। अब ऐसे संगठन और उससे जुड़े लोगों से निपटने के लिए सरकार क्यों कड़े कदम नहीं उठा रही है, इस प्रश्न के दिमाग में आते ही सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल उठना स्वाभाविक है…. लेकिन इन सबके बीच एक डर भी है कि कहीं बस्तर वाले लाल सलाम की तरह ही एक हिंसक नीला सलाम भी न खड़ा हो जाए… जो देश को अंदर से तोड़ने की कोशिश करता रहे, हमारे अपनों को ही मारता रहे और हमारे देश के बुद्धिजीवी उनके समर्थन में लेख लिखते रहें।
विश्वास मानिए, राजनीति की कमजोर इच्छाशक्ति का ही नतीजा है कि हम नक्सलवाद को आज अपने सीने पर ढो रहे हैं। अगर ऐसा ही रहा तो एक नई थिअरी के साथ ‘नीले नक्सली’ भी देश को भीतर से खोखला कर देंगे और हम जातिवाद के कुचक्र में फंसे रहेंगे।
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